Jagannath Rath Yatra 2024 :भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा उड़ीसा के पुरी में हर साल बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। यह यात्रा हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसमें भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र संग सम्मिलित होते हैं। यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होती है और आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को समाप्त होती है।इस बार की रथ यात्रा एक दुर्लभ संयोग पर हो रही है, जिससे इसे और भी विशेष माना जा रहा है।

यह संयोग ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है और इस दिन किए गए पूजा-पाठ का विशेष फल प्राप्त होता है।भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसमें सम्मिलित होकर भक्तगण अपनी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करते हैं और भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।
रथ यात्रा के प्रमुख तत्व
- भगवान जगन्नाथ का रथ: भगवान जगन्नाथ का रथ ‘नंदीघोष’ कहलाता है और इसमें 16 पहिए होते हैं।
- सुभद्रा का रथ: सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’ कहलाता है और इसमें 12 पहिए होते हैं।
- बलभद्र का रथ: बलभद्र का रथ ‘तलध्वज’ कहलाता है और इसमें 14 पहिए होते हैं।

यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जो उनका मौसी का घर माना जाता है। यह यात्रा भक्तों के लिए एक विशेष अवसर होता है और इसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
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कब से शुरू होगी यात्रा

- -वैदिक पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा 07 जुलाई को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से शुरू होगी.
- – यह यात्रा सुबह 09 बजकर 27 मिनट तक निकाली जाएगी.
- – इसके बाद यात्रा दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से फिर से शुरू होगी.
- – इस बार यात्रा 01 बजकर 37 मिनट पर विश्राम लेगी.
- – इसके बाद शाम 04 बजकर 39 मिनट से यात्रा शुरू होगी.
- – अब यह यात्रा 06 बजकर 01 मिनट तक चलेगी.
क्या है मान्यता?

धार्मिक पुराणों के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की इस रथयात्रा में शामिल होने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य का फल मिलता है। यही कारण भी है कि दुनियाभर से लोग इस यात्रा में शामिल होने पहुंचते हैं और भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। इसके अलावा, रथ यात्रा के दौरान नवग्रहों की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने मात्र से ही अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है और शुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ता है।
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कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत

भगवान जगन्नाथ की यात्रा सदियों से चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं शताब्दी में हुई थी. एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से कहा कि वे नगर को देखना चाहती हैं। इसके बाद अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के लिए दोनों भाइयों ने बड़े ही प्यार से एक रथ तैयार करवाया। इस रथ में तीनों भाई- बहन सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले थे और भ्रमण पूरा करने के बाद वापस पुरी लौटे तभी से यह परंपरा चली आ रही है।