Jagdeep Dhankhar Speech: उप-राष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा देने के ठीक 4 महीने बाद, पूर्व उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपनी पहली सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज कराई। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में, उन्होंने अपने इस्तीफे के फैसले को लेकर पहली बार खुलकर, लेकिन इशारों-इशारों में बहुत कुछ कह दिया। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सह-सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य की पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ के विमोचन का था, जहाँ उन्होंने उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया।
Jagdeep Dhankhar Resignation: कांग्रेस का बड़ा आरोप, “धनखड़ को इस्तीफा देने पर किया गया मजबूर”…
धनखड़ ने इस्तीफे पर दिया सधा हुआ बयान
अपने संबोधन के दौरान, जगदीप धनखड़ ने एक सधा हुआ लेकिन मर्मस्पर्शी बयान दिया, जिसने उनके अचानक पद छोड़ने के निर्णय पर अटकलों को हवा दी। उन्होंने कहा कि “समय की कमी थी, इसलिए मेरा गला पूरी तरह से खुल नहीं पाया।” इसके बाद उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात जोड़ी: “लेकिन फ्लाइट छूटने की चिंता में मैं अपना कर्तव्य नहीं भूल सकता और इसका सबसे बड़ा उदाहरण मेरा अतीत है।” इसके तुरंत बाद, मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा, “लेकिन मैं अपने मन की बात पूरी नहीं बोल सकता।” ये बातें कहकर, मानसून सत्र से ठीक पहले दिए गए उनके उप-राष्ट्रपति पद के इस्तीफे पर उन्होंने परोक्ष रूप से अपनी भावनाओं को व्यक्त कर दिया।
संघ की जमकर प्रशंसा
पूर्व उप-राष्ट्रपति ने अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा पर भी खुलकर बात की और उसकी जमकर तारीफ की। उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि “आज की उथल-पुथल से भरी दुनिया का मार्गदर्शन सिर्फ भारत कर सकता है।” उनका मानना था कि इसके लिए भारत अपनी 6000 साल पुरानी परंपराओं और सभ्यताओं के अनुभव का लाभ उठा सकता है। धनखड़ ने RSS को राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण शक्ति बताया, यह कहते हुए कि संघ में भारत देश को और मजबूत करने की क्षमता है।
RSS पर लगे मिथकों को तोड़ती है मनमोहन वैद्य की पुस्तक
जगदीप धनखड़ ने माना कि RSS को लेकर देशवासियों के मन में कई गलतफहमियां हैं और इस पर झूठे आरोप भी लगते रहे हैं। उन्होंने मनमोहन वैद्य की पुस्तक की महत्ता पर जोर दिया, यह कहते हुए कि यह किताब RSS से जुड़े मिथकों को तोड़कर देशवासियों को असली RSS के दर्शन कराती है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि लोगों को नैरेटिव की जिंदगी से बाहर आना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया और नई पीढ़ी नैरेटिव के आधार पर जीवन जी रही है। एक बार जो सोच लिया जाता है, उसे ही स्वीकार कर लिया जाता है, जिसके बाद सफाई देने का कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने चेतावनी दी कि नैरेटिव के चक्कर में न ही पड़े तो बेहतर होगा, क्योंकि एक बार इसमें फंसने के बाद निकलना मुश्किल है।

