Jammu Kashmir News: श्रीनगर की विश्व प्रसिद्ध डल झील शुक्रवार को एक बार फिर इतिहास की गवाही बनी, जब मुहर्रम के अवसर पर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए शिकारा नावों पर सवार होकर घाटी के विभिन्न इलाकों से आए शिया समुदाय के लोगों ने पारंपरिक ‘नाव मुहर्रम जुलूस’ निकाला। यह जुलूस आशूरा से एक दिन पहले निकाला गया और यह 185 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है।
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रैनावाड़ी से कैनकेच तक चला शिकारा जुलूस
शोक मनाने वाले लोग रैनावाड़ी में एकत्र हुए और वहां से कैनकेच की ओर डल झील के अंदरूनी हिस्सों में लकड़ी की नावों पर सवार होकर जुलूस निकाला। यह मार्ग सालों पुराना है और हर साल इसी परंपरा के अनुसार शिकारे चलते हैं। इस दौरान मातमी नौहे और इमाम हुसैन की शहादत से जुड़े धार्मिक गीत गूंजते रहे।
हसनाबाद इमामबाड़े पर होता है समापन
यह ऐतिहासिक जुलूस श्रीनगर के हसनाबाद इमामबाड़े में आशूरा के दिन समाप्त होता है। यह जुलूस उस दुखद घटना की याद में होता है, जब 1400 साल पहले कर्बला के रेगिस्तान में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके परिजनों की शहादत हुई थी। जुलूस में शामिल लोग छाती पीटते हुए और धार्मिक मंत्र बोलते हुए कर्बला के बलिदान को याद करते हैं।
झील में झंडों से सजे शिकारे बने आस्था का प्रतीक
शिकारा पर सजे काले और हरे झंडों के साथ यह दृश्य न केवल घाटीवासियों के लिए बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक बेहद अनूठा और आध्यात्मिक अनुभव रहा। लोग इसे ‘आस्था और बलिदान की तैरती हुई तस्वीर’ बताते हैं। जुलूस में भाग लेने वाले कई लोगों ने कहा कि यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी घाटी की आत्मा का हिस्सा है।
अतीत में होते थे जमीनी जुलूस, अब झील में जारी है परंपरा
ऐतिहासिक रूप से मुहर्रम के जुलूस श्रीनगर के मध्य इलाकों से गुजरते थे, विशेष रूप से अबी गूजर से जादीबल तक। इन जुलूसों में हजारों लोग हिस्सा लेते थे और नौहा, मातम और धार्मिक नारों के माध्यम से शोक व्यक्त करते थे। अब प्रशासनिक कारणों और सुरक्षा व्यवस्था के चलते यह परंपरा झील में जारी है।
कुछ प्रदर्शनकारियों ने दिखाईं ईरानी नेताओं की तस्वीरें
इस जुलूस में कुछ प्रदर्शनकारियों ने ईरान के हिजबुल्लाह नेता हसन नसरुल्लाह, जनरल सुलेमानी और अन्य शहीद ईरानी जनरलों की तस्वीरें भी प्रदर्शित कीं। इसके चलते प्रशासन ने सतर्कता बरती, विशेषकर इसलिए भी क्योंकि इस समय अमरनाथ यात्रा भी चल रही है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के सलाहकार विजय कुमार बिधूड़ी ने लोगों से जुलूस को पूरी धार्मिक मर्यादा और शांतिपूर्ण तरीके से मनाने की अपील की।
डल झील में शिकारा जुलूस के रूप में मनाया गया यह मुहर्रम सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि घाटी की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रमाण है। यह परंपरा भावनाओं, इतिहास और आस्था का ऐसा संगम है जो समय के साथ और भी गहराता जा रहा है।