Jitiya Vrat Katha: संतान की लंबी उम्र और मंगलमय जीवन के लिए माताएं हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया व्रत) करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से पुत्र की रक्षा और कल्याण के लिए किया जाता है। इस साल जितिया व्रत रविवार, 14 सितंबर यानी आज रखा गया है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और विशेष पूजा करती हैं। जितिया व्रत करने वाली महिलाओं को इस दिन व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए माना जाता है, कि ऐसा करने से व्रत पूजा का फल मिलता है तो हम आपके लिए लेकर आए हैं जितिया व्रत कथा।
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जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, एक दिन जीमूतवाहन नामक धर्मात्मा व्यक्ति गंधमादन पर्वत की यात्रा कर रहे थे। तभी उन्होंने एक महिला के करुण क्रंदन की आवाज सुनी। पूछताछ करने पर उन्होंने जाना कि वह महिला नागवंशी शंखचूड़ की माता है, जिसका पुत्र गरुड़ द्वारा उठाकर खा लिया जाने वाला था।
जीमूतवाहन ने उस दुखी माता को सांत्वना दी और वचन दिया कि वे उसके पुत्र की रक्षा करेंगे। उन्होंने स्वयं को शंखचूड़ का रूप देकर गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जिससे गरुड़ उन्हें खा ले और शंखचूड़ की जान बच जाए।
गरुड़ जब जीमूतवाहन को लेकर उड़ चला तो कुछ दूरी पर जाकर उसे अहसास हुआ कि यह वास्तविक शंखचूड़ नहीं है। गरुड़ ने जब कारण पूछा तो जीमूतवाहन ने कहा कि उन्होंने एक माता को पुत्र वियोग में रोते देखा और उसकी पीड़ा को दूर करने के लिए खुद को बलिदान करने का निर्णय लिया।
जीमूतवाहन की सहनशीलता और त्याग से प्रभावित होकर गरुड़ ने उन्हें जीवनदान दिया और शंखचूड़ की जान भी बख्श दी। उस दिन आश्विन मास की कृष्ण अष्टमी तिथि थी।
व्रत की परंपरा और महत्व
इसी प्रेरणादायक घटना की स्मृति में जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जाने लगा। इस दिन माताएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और अपने बच्चों की दीर्घायु, स्वास्थ्य व समृद्धि की कामना करती हैं। यह व्रत निःस्वार्थ प्रेम, त्याग और मातृत्व की शक्ति का प्रतीक है।
मान्यता है कि जिस प्रकार जीमूतवाहन ने एक माता को पुत्र वियोग से बचाया, उसी प्रकार वे आज भी व्रत रखने वाली माताओं की संतान की रक्षा करते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह मातृत्व प्रेम, आत्मबलिदान और संतान की रक्षा की भावना को भी दर्शाता है। इसलिए हर वर्ष यह व्रत पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है, ताकि संतान के जीवन में कभी कोई संकट न आए।

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