J&K Statehood Demand: जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 8 अगस्त को सुनवाई करेगा। यह सुनवाई ऐसे समय में हो रही है जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने की वर्षगांठ भी 5 अगस्त को पड़ती है। इसी दिन 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने बहाली की समयसीमा तय करने की मांग की
यह याचिका जम्मू-कश्मीर के प्रोफेसर जहूर अहमद भट्ट और सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने दायर की है। याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह निश्चित समयसीमा में जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करे। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि राज्य में पहले ही पंचायती और नगर निकाय चुनाव हो चुके हैं और सुरक्षा स्थिति भी नियंत्रण में है, ऐसे में पूर्ण राज्य का दर्जा देने में कोई बाधा नहीं है।
लंबे समय तक बहाली में देरी नागरिक अधिकारों का उल्लंघन
याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र द्वारा लंबे समय तक राज्य का दर्जा बहाल न करना, संविधान के तहत नागरिकों के अधिकारों का हनन है। चुनी हुई सरकार और विधानसभा के अभाव में स्थानीय लोगों की राजनीतिक भागीदारी सीमित रह गई है।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही अनुच्छेद 370 हटाने को बता चुका है वैध
गौरतलब है कि दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 हटाने और विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के फैसले को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया था। अदालत ने कहा था कि अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधान था, जिसे हटाया जाना संविधान के अनुरूप है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा देगी। हालांकि अदालत ने इस बहाली के लिए कोई निश्चित समयसीमा तय नहीं की थी।
सरकार के ऐलान को लेकर जारी हैं कयास
बीते कुछ दिनों से इस बात को लेकर राजनीतिक हलकों और मीडिया में अटकलें तेज हैं कि केंद्र सरकार जल्द ही जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दे सकती है। कयास यह भी लगाए गए थे कि सरकार 5 अगस्त को ही इस संबंध में घोषणा कर सकती है, हालांकि आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा देना न सिर्फ संविधानिक बहस, बल्कि राजनीतिक लिहाज से भी अहम मुद्दा बन गया है। 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से इस दिशा में नई संवैधानिक दिशा मिल सकती है।
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