Jyotiba Phule Punyatithi 2025: ज्योतिबा फुले का जीवन समाज में बदलाव लाने और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए समर्पित रहा। उनकी पुण्यतिथि 28 नवंबर को पूरे देश में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जाती है। फुले का नाम भारतीय समाज सुधारकों में विशेष स्थान रखता है। उन्होंने अपने विचारों और कार्यों से सामाजिक अन्याय, जातिगत भेदभाव और महिलाओं के प्रति भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया।
समानता और शिक्षा
19वीं सदी में भारतीय समाज में महिलाओं और अलग-अलग जातियों के लिए शिक्षा लगभग असंभव मानी जाती थी। ऐसे समय में ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर इस दिशा में मार्ग बढ़ाया। उन्होंने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल खोला। उनके प्रयासों से न केवल महिलाओं को शिक्षा का अधिकार मिला, बल्कि समाज में शिक्षा के महत्व को भी समझाया गया। उन्होंने कुल 18 स्कूल स्थापित किए, जिनमें दलित और पिछड़े वर्ग के बच्चों को पढ़ाई का अवसर दिया गया।
सामाजिक सुधार के लिए संघर्ष
ज्योतिबा फुले ने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव, छुआछूत और अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना कर दलितों और वंचितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उनकी मेहनत और संघर्ष के चलते सरकार ने ‘ऐग्रिकल्चर ऐक्ट’ पास किया और उन्होंने समाज में ‘दलित’ शब्द को पहली बार प्रयोग में लाया। फुले बाल विवाह के खिलाफ थे और विधवा विवाह के समर्थक थे।
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महिला उत्थान के लिए योगदान
फुले और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक अधिकारों के लिए अनगिनत प्रयास किए। वे महिलाओं को समान अवसर देने के प्रबल पक्षधर थे। उनका यह दृष्टिकोण आज भी समानता और महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा देता है।
सम्मान और उपाधिया
आपको बता दें कि, 1888 में मुंबई में आयोजित एक विशाल सभा में ज्योतिबा फुले को उनके समाज सुधार के प्रयासों के लिए “महात्मा” की उपाधि दी गई। यह उपाधि उनके सतत प्रयासों और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित जीवन का प्रतीक बनी।
ज्योतिबा फुले का प्रेरक संदेश
ज्योतिबा फुले का जीवन हमें यह सिखाता है कि समाज में बदलाव केवल सोच और विचारों से नहीं, बल्कि कर्म और संघर्ष से आता है। उनका योगदान हमें जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने, महिलाओं की शिक्षा सुनिश्चित करने और वंचितों के उत्थान के लिए प्रेरित करता है।
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