kamakhya Mandir Rahasya: एक ऐसा धार्मिक स्थल जहां होता है देवी का रजस्वला चमत्कार,जाने यहाँ के अद्भुत रहस्य का राज…

असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या देवी मंदिर है. देवी के 52 शक्ति पीठों में से एक है और यह शक्ति पीठ तांत्रिक साधनाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है

Shilpi Jaiswal
kamakhya Mandir Rahasya
kamakhya Mandir Rahasya

kamakhya Mandir Rahasya: भारत भूमि पर आज भी ऐसे हज़ारों मंदिर मौजूद हैं. जहां चमत्कार होते हैं. जो भक्तों के विश्वास और आस्था को और भी दृढ करने में सहायक होते हैं. आपने भी कई चमत्कारों के बारे में पढ़ा या सुना होगा परंतु कभी आपने सुना है कि किसी मंदिर में देवी प्रतिमा रजस्वला होती है? अगर नहीं तो आइए आज हम बताते हैं आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में, जहां देवी के रजस्वला होने के सबूत प्राप्त होते हैं,देखिए हमारी खास रिर्पोट में….

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नीलांचल पर्वत पर स्थित है कामाख्या देवी

गुवाहाटी, असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या देवी मंदिर है. देवी के 52 शक्ति पीठों में से एक है और यह शक्ति पीठ तांत्रिक साधनाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.पौराणिक कथाओं के माता सती के पिता एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवतों को यज्ञ में आमंत्रित किया लेकिन माता सती के पति महादेव को आमंत्रण नही दिया. जिसके बाद माता सती का पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाना मुश्किल हो गया. पंरतु पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती महादेव को बिना बताए चली गई.

यज्ञ के दौरान माता सती के पिता ने महादेव का अपमान किया,इस बात से आहत माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राण की आहूति दे दी. इस बात का पता जैसे ही महादेव को चला उनका क्रोध इतना विक्राल हो गया कि सारा संसार अस्त-व्यस्त हो गया. यज्ञ में जले माता सती के शरीर को लेकर भगवान शिव पूरे संसार में भ्रमण करने लगे. जिसके कारण उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था.

भगवान शिव के क्रोध से घबराये सभी देवता गढ़ स्थिति को संभालने के लिए भगवान विष्णु के पास गये और सारी व्यथा का वखान किया. जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव शरीर के कई अंग कट गये और धरती के52 विभिन्न स्थानों पर देवी सती के श्रीअंग जा गिरे, और जिंह जगहों पर अंग करे उन जगहों पर 52 शक्तिपीठों की स्थापना हुई.असम के नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी, जिसके बाद यहां कामाख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना हुई.

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कौन थे कामदेव?

कहा जाता है कि माता सती के जाने के बाद भगवान शिव समाधी में चले गए और तपस्या में लीन हो गए. इसी बीच तारका सूर नाम दैत्य असूर ने घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी से असीन शक्तियां प्राप्ता कर ली. जिसके बाद तारका सूर से तीनों लोकों में आतंक मचा दिया. वहीं इस बात से परेशान देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उनको अपनी व्याथा बताई. जिसके बाद ब्रह्मा जी ने उनको बताया की तारका सूर का वध सिर्फ भगवान शिव का पुत्र ही कर सकता है. भगवान शिव उमानद पर्वत पर तपस्या कर रहे थे. उसी दौरान कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का कार्य सौंपा गया.

जिसके बाद काम देव भगवान शिव की तपस्या भंग करने पहुंच गया और कामदेव ने अपने बांण से भगवान शिव के समाधी भंग कर दी. जिससे नाराज भगवान शिव की तीसरी आंख खुली और कामदेव को भस्म कर दिया. जिसके बाद कामदेव की पत्नी और अन्य देवी देवता भगवान शिव के पास गए और कामदेव को पुन जीवन दान देने की बात कही… जिसके कुछ देर बाद भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने कामदेव को पुन जीवन दान दिया परतुं कामदेव की सुंदरता वापस न आ सकी.

जिसके बाद कामदेव और उनकी पत्नी ने भगवान शिव से कहा कि मुझे ऐसा जीवन न दें जिसमें सौंदर्य न हो. ऐसा जीवन मुझे स्वीकरा नहीं है. जिसके बाद भगवान शिव ने कहा कि निलांचल पर्वत पर माता सती के जंननाग पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाओ. इस बात को सुनकर कामदेव ने बात को स्वीकार किया और पर्वत पर मंदिर निर्माण का कार्य शुरू कर दिया है. मंदिर निर्माण कार्य में कामदेव ने विश्वाकर्मा की सहायता ली, जिन्होंने मंदिर की भव्य संचना बनाई.

वहीं मंदिर में कामदेव ने मंदिर में भैरव और चौसठ योनियों मूर्ति की स्थापना करवाई. उनकी कड़ी तपस्या देख भगवान शिव प्रसन्न हुए और कामदेव की पुरानी सुंदरता उनको वापस कर दी और मंदिर को मूलता आनंदख्या नाम दिया गया और जिस स्थान पर भगवान शिव ने समाधी ली थी. उस स्थान पर उमानंद भैरव मंदिर की स्थापना की गई. इतिहासकारों के अनुसार मां कमाख्या माता के दर्शन करने जो भी भक्त आते है उन सभी भक्त को उमानंद भैरव दर्शन करना आनिवार्यहोता है.

असूर ने कहा कि मै यहां का राजा हूं…

अन्य कथा के अनुसार मां कमाख्या माता के मंदिर के ऊपर असूर नरका सूर का राज था. शुरू में तो नरकासूर माता का बहुत बड़ा भक्त था लेकिन कुछ समय बाद उसको शक्ति की इतनी लालसा हो गई कि उसने माता से विवाह करने का प्रस्ताव रख दिया. मां ने उसके प्रस्ताव को मना नही किया बल्कि उसके सामने एक प्रस्ताव रख दिया. मां ने नरकासूर से कहा कि तुम नीलांचल पर्वत तक तुम एक सीढ़ी का निर्माण करो और एक बात का विशेष ध्यान रखना की सीढ़ी का निर्माण एक ही रात में कर दो.

अगली सुबह मुर्गें की बांग से पहले तुम्हारा कार्य संपन्न हो जाना चाहिए. अगर मुर्गें की बांग से पहले तुम्हारा कार्य संपन्न न हुआ तो. मुझसे विवाह करने के बारे में भूल जाना. इस चुनौती को नरकासूर ने स्वीकार कर ली और उसने अपनी विशाल सेना के साथ सीढी निर्माण कार्य शुरू कर दिया. वहीं नरकासूर को अपना काम समय से पूरा करता देख मां ने अपनी शक्ति से समय से पहले मुर्गे बांग मरवा दी.

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वहीं मुर्गे की बांग सुनके नरकासूर से अपनी हार स्वीकार कर ली और वापस जाने लगा. लेकिन वहीं फिर नरकासूर को पता चला कि माता ने अपनी शक्ति से समय से पहले मुर्गें से बांग मरवादी. जिसके बाद नरकासूर क्रोधित हो गया और उसने मां के भक्ति मार्ग को बंद करने की ठान ली और सीढ़ियों को वहीं छोड़ दियाऔर वहीं जिस स्थान पर मुर्गों ने बांग दी थी उसी स्थान पर नरकासूर ने उसको मार डाला और आज उस स्थान को कुकुराकाटा के नाम से जाना जाता है.

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