Karnataka CM Crisis: कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे होने के बाद अंदरूनी खींचतान खुलकर सामने आने लगी है। विवाद की जड़ में वह रोटेशनल मुख्यमंत्री का फॉर्मूला है, जिसे लेकर लंबे समय से चर्चा चल रही है। हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने इस व्यवस्था की आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं की, परंतु डीके शिवकुमार खेमे का दावा है कि ऐसा समझौता मई 2023 में हुआ था। जब भी सांसद डीके सुरेश ने इस सौदे को सार्वजनिक करने की कोशिश की, तो पार्टी नेतृत्व ने आपत्ति जताई, इसे सरकार अस्थिर होने की वजह बताया। यही कारण रहा कि यह मुद्दा शिवकुमार के समर्थक विधायकों के बीच एक ‘आंतरिक समझौता’ बनकर रह गया, जबकि सिद्धारमैया के करीबी लगातार इसका खंडन करते रहे।
Karnataka CM Crisis: रोटेशनल CM का दावा कैसे पैदा हुआ
शिवकुमार गुट के सूत्रों के अनुसार 18 मई 2023 को सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला और डीके सुरेश के बीच लंबी बैठक के बाद रोटेशनल मुख्यमंत्री का फॉर्मूला तय हुआ। शुरुआत में डीके शिवकुमार ने पहले ढाई साल की मांग रखी, पर सिद्धारमैया ने वरिष्ठता का तर्क देते हुए इसे स्वीकार नहीं किया। अंतत: यह सहमति बनी कि सिद्धारमैया पहले ढाई साल मुख्यमंत्री रहेंगे और शेष अवधि में शिवकुमार नेतृत्व संभालेंगे। हालांकि पार्टी ने इसे कभी सार्वजनिक रूप से मंजूरी नहीं दी।
Karnataka CM Crisis: सोशल मीडिया पर शिवकुमार का संकेत
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हाल ही में एक्स अकाउंट पर एक पोस्ट साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा, “अपनी बात पर कायम रहना दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है।” बिना नाम लिए यह संदेश सीधे तौर पर सिद्धारमैया की ओर इशारा माना गया। दूसरी ओर, सिद्धारमैया और उनके करीबी यह दावा करते रहे कि वे पूरा पाँच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे और 2023 में नेता चुने जाने के दौरान ढाई–ढाई साल के किसी भी फार्मूले का उल्लेख नहीं किया गया था।
दिल्ली में बढ़ा दबाव
इंडिया टूडे की रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2025 में सरकार के ढाई साल पूरे होते ही शिवकुमार के समर्थक विधायक कथित समझौते को लागू करने की मांग लेकर दिल्ली पहुंच गए। कुछ मंत्रियों ने याद किया कि कैबिनेट गठन के समय एआईसीसी नेताओं ने उनसे कहा था कि वे पहले 2.5 साल मंत्रालय संभालें और बाद में नेतृत्व परिवर्तन के साथ विभागों में फेरबदल किया जाएगा। इन घटनाओं से मामला सार्वजनिक हो गया और विवाद बढ़ गया। सूत्रों के अनुसार सिद्धारमैया ने निजी तौर पर कई बार कहा कि यदि आलाकमान निर्देश देगा तो वह पद छोड़ने को तैयार हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 22 नवंबर को कहा कि इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय हाईकमान ही लेगा।
बदलते बयान और नरम होती भाषा
लंबे समय तक कठोर रुख अपनाने के बाद सिद्धारमैया के सुर 22 नवंबर के बाद बदलते दिखे। वे पहले कहते थे कि सरकार पांच साल चलेगी और वे पूरे कार्यकाल मुख्यमंत्री रहेंगे। लेकिन खड़गे के साथ बैठक के बाद उनका संदेश नरम पड़ा “सत्ता-बंटवारे का फैसला आलाकमान करेगा।” दो दिन बाद उन्होंने यह भी कहा कि यदि नेतृत्व चाहेगा तो वे पद पर बने रहेंगे। वहीं उनके आर्थिक सलाहकार बसवराज रायरेड्डी ने स्पष्ट किया कि सिद्धारमैया बिना ठोस कारणों के पद नहीं छोड़ेंगे।
सिद्धारमैया की चुनावी घोषणाओं का पुराना पैटर्न
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सिद्धारमैया पहले भी कई बार “आखिरी चुनाव” वाली घोषणाएँ कर चुके हैं 2013, 2018 और फिर 2023 में। इस इतिहास के आधार पर उनके आलोचक वर्तमान विवाद में भी इसी पैटर्न को दोहराया हुआ देखते हैं।दूसरी ओर डीके शिवकुमार शांत और संयमित नजर आ रहे हैं। उनके समर्थक नेताओं का कहना है कि कर्नाटक की राजनीतिक व्यवस्था में बगावत की संभावनाएँ कम हैं, इसलिए फिलहाल धैर्य ही उनकी रणनीति है। इसी बीच उनके विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं ताकि आलाकमान पर कथित समझौते को लागू करने के लिए दबाव बनाया जा सके।
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