Kawad Yatra 2025: सनातन धर्म में सावन का महीना बेहद ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है, इस माह पड़ने वाला सोमवार शिव साधना को समर्पित होता है। इस साल सावन की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है और इसका समापन 9 अगस्त को हो जाएगा। सावन शुरू होने के साथ ही कांवड़ यात्रा का भी आरंभ हो जाएगा। सावन में शिव के भक्त उनके प्रति अपनी भक्ति आस्था और प्रेम को प्रकट करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। कांवड़ यात्रा की शुरुआत कब और किसने की थी, जानें इससे जुड़ा इतिहास।
आपको बता दें कि सावन के पवित्र महीने में केसरिया रंग धारण करने वाले भक्तों को कांवड़ियां कहा जाता है। सावन महीने में शिव के यह भक्त गंगाजल लाकर महादेव को अर्पित करते हैं। कांवड़ यात्रा उत्तर भारत में प्रचलित है, कांवड़ियों द्वारा लाया गया यह पवित्र जल सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि पर शिव को चढ़ाया जाता है।
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परशुराम ने की कांवड़ यात्रा की शुरुआत

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम ने सबसे पहली कांवड़ यात्रा की थी। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पास शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाए थे। इसलिए सावन में आज भी लाखों भक्त इस मार्ग पर चलकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
दूसरी कथा श्रवण कुमार से जुड़ी
दूसरी कथा के अनुसार त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की नींव रखी थी। श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को लेकर तीर्थ पर उनकी इच्छा पूरी करने के लिए जा रहे थे। श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांवड में बैठाकर हरिद्वार लाए और गंगा स्नान कराया। लौटते वक्त वे साथ में गंगाजल भी ले गए, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
रावण ने किया था शिव का अभिषेक
बता दें कि ऐसा माना जाता है कि लंकापति रावण ने भी हिमालय से गंगाजल लाकर शिव पर अर्पित किया था और उनकी विधिवत पूजा की थी। समुद्र मंथन से निकले विष को पीकर जब शिव का कंठ नीला हो गया, तब गंगाजल से अभिषेक के बाद उनको ठंडक मिली।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां पौराणिक कथाओं,धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। खबर में दी जानकारी पर विश्वास व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और विवेक पर निर्भर करता है।प्राइम टीवी इंडिया इस पर दावा नहीं करता है ना ही किसी बात पर सत्यता का प्रमाण देता है।
