Sindoor Khela 2025: विजयादशमी पर कोलकाता में ‘सिंदूर खेला’ की धूम, महिलाओं ने मनाया शक्ति का उत्सव

Chandan Das
Sindur Khela

Sindoor Khela 2025:  बंगाल की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी दुर्गा पूजा का आज भव्य समापन हुआ। विजयादशमी के पावन अवसर पर कोलकाता के प्रसिद्ध मुदियाली क्लब में पारंपरिक ‘सिंदूर खेला’ का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों महिलाओं ने भाग लेकर मां दुर्गा को विदाई दी और शक्ति, सौहार्द और नारी एकता का उत्सव मनाया।

क्या है सिंदूर खेला?

सिंदूर खेला एक पारंपरिक बंगाली रस्म है, जो विजयादशमी के दिन होती है। इस दिन विवाहित महिलाएं पहले मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सौभाग्य, समृद्धि और शक्ति की कामना करती हैं। यह रस्म न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि महिलाओं के बीच आपसी एकता और सहयोग की भावना को भी मजबूत करती है।

मुदियाली क्लब बना भक्ति और उत्साह का केंद्र

कोलकाता का मुदियाली क्लब हर साल अपनी भव्य दुर्गा पूजा और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के लिए जाना जाता है। इस वर्ष भी यहां की सजावट, पंडाल की भव्यता और मां दुर्गा की आकर्षक प्रतिमा ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पूजा के अंतिम दिन यानी दशहरा (विजयादशमी) के अवसर पर जब सिंदूर खेला शुरू हुआ, तो पूरा माहौल भक्तिभाव और उत्साह से भर गया। सजी-धजी महिलाएं पारंपरिक लाल-बॉर्डर वाली साड़ियों में, माथे पर बड़ी बिंदियां और हाथों में पूजा की थाल लिए मां के दर्शन के लिए पंडाल पहुंचीं। उन्होंने देवी दुर्गा को विदाई देने से पहले उन्हें सिंदूर अर्पित किया और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर बधाई दी।

सामाजिक संदेश भी हुआ शामिल

इस वर्ष सिंदूर खेला के आयोजन को और भी खास बनाया गया। आयोजकों ने नारी सशक्तिकरण, सामाजिक समरसता और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता जैसे मुद्दों को सिंदूर खेला के माध्यम से उजागर करने की कोशिश की। इस आयोजन में अलग-अलग वर्गों की महिलाओं ने भाग लेकर एकजुटता का संदेश दिया।

 विसर्जन से पहले मां को नम आंखों से विदाई

सिंदूर खेला के बाद, मां दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन की तैयारी शुरू हुई। भक्तों ने नम आंखों से मां को अलविदा कहा और अगले वर्ष पुनः आगमन की कामना की  “आसचे बोछोर आबार होबे!” (अगले वर्ष फिर मिलेंगे)। डीजे की धुन पर ढाक की थाप और जयकारों के बीच मां दुर्गा की प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया गया।

मुदियाली क्लब का सिंदूर खेला न केवल बंगाल की परंपरा का प्रतीक है, बल्कि यह उत्सव नारी शक्ति, भक्ति और सांस्कृतिक एकता की जीवंत मिसाल भी है। हर वर्ष की तरह इस बार भी कोलकाता ने मां दुर्गा को भव्य विदाई दी, और विजयादशमी को उल्लास व श्रद्धा के साथ मनाया।

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