Mahila Naga Sadhu:Maha Kumbh में मोह-माया त्यागकर पुरुष और महिलाएं बने नागा संन्यासी, कठिन प्रक्रिया जानकर हो जाएंगे हैरान!

महाकुंभ 2025 के आयोजन में अब तक की रिकॉर्ड तोड़ श्रद्धालु संख्या के साथ, भविष्य में इस संख्या के और बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।

Mona Jha
Maha Kumbh 2025
Maha Kumbh 2025

Mahila Naga Sadhu: प्रयागराज में हो रहे महाकुंभ 2025 में इस बार भी नागा संन्यासी बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस धार्मिक आयोजन में हर बार अलग-अलग अखाड़े सैकड़ों लोगों को नागा साधु बनाने की दीक्षा देते हैं। इस बार रविवार को इस प्रक्रिया की शुरुआत हुई, जिसमें पुरुषों और महिलाओं को नागा संत बनने की दीक्षा दी गई। निरंजनी अखाड़े ने लगभग 500 पुरुषों को नागा संत बनाया, जबकि जूना अखाड़े ने लगभग 100 महिलाओं को नागा संत बनाने की प्रक्रिया पूरी की।

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नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया

नागा संत बनने की प्रक्रिया में पुरुष और महिला दोनों के लिए कुछ समानताएँ हैं। इस प्रक्रिया में सबसे पहले उन लोगों का मुंडन किया जाता है। इसके बाद उन्हें गंगा में स्नान कराया जाता है और कुछ विशेष संस्कार किए जाते हैं। यह प्रक्रिया बहुत ही पवित्र मानी जाती है और इसके द्वारा व्यक्ति अपने सांसारिक जीवन से बाहर निकलकर पूरी तरह से सन्यासी जीवन अपनाता है।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी दास के अनुसार, नागा संत बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले ‘विजया हवन’ संस्कार किया जाता है, जिसमें व्यक्ति और उनके पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है। इसके बाद गंगा में जाकर 108 कसमें खाई जाती हैं, जिसमें व्यक्ति अपने संन्यास जीवन के प्रति पूरी प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। ये कसमें गंगा जल के साथ खाई जाती हैं, और इन्हें पूरी करने के बाद व्यक्ति नागा संत की श्रेणी में आता है। इस दौरान व्यक्ति संकल्प लेता है कि वह सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार रहेगा और कभी घर नहीं लौटेगा, न ही शादी करेगा। यदि कोई नागा संत अपनी कसम तोड़ता है, जैसे कि घर लौटने का या शादी करने का, तो उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है।

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महिला नागा संन्यासियों की संख्या में वृद्धि

इस बार जूना अखाड़े ने 100 महिलाओं को नागा संत बनाने की दीक्षा दी, जो एक सकारात्मक बदलाव की ओर इशारा करता है। इन महिला नागा संन्यासियों की प्रक्रिया भी पुरुषों से मिलती-जुलती थी। सबसे पहले इन महिलाओं का मुंडन संस्कार किया गया, फिर उन्हें गंगा में स्नान कराया गया। इसके बाद वैदिक मंत्रों के साथ दीक्षा दी गई। इस प्रक्रिया के दौरान महिलाओं को धार्मिक आचार संहिता और संन्यासी जीवन की पूरी प्रतिबद्धता की शपथ दिलाई गई।

इस दौरान अखाड़े के संत और गुरु ने महिला नागा संन्यासियों को अपने जीवन के उद्देश्य और धार्मिक आस्थाओं को सही दिशा में अनुसरण करने का वचन लिया। जैसे पुरुष नागा संन्यासियों को 108 बार कसमें खिलाई जाती हैं, वैसे ही महिलाओं को भी यही कसमें खाई जाती हैं कि वे अपना घर-परिवार छोड़कर केवल सन्यासी जीवन अपनाएंगी। इसके बाद भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया, जिसमें सभी ने मिलकर संतों और गुरुओं के साथ धार्मिक संगीत में भाग लिया।

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