Mahmood Madani: कोर्ट को ‘सुप्रीम’ कहलाने का हक नहीं, मौलाना महमूद मदनी ने उठाए सवाल

क्या न्यायपालिका भी दबाव में है? महमूद मदनी ने भरी महफ़िल में सुप्रीम कोर्ट को लेकर जो कहा, उससे मचा हड़कंप! जानें जमीयत प्रमुख ने ऐसा क्यों कहा कि कोर्ट को 'सुप्रीम' कहलाने का अधिकार नहीं है?

Chandan Das
Mahmood Madani
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Mahmood Madani: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान ऐसा बयान दिया है जिसने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा को तेज कर दिया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को “सुप्रीम” कहलाने का अधिकार तभी है जब वह पूरी तरह निष्पक्ष रहे और किसी राजनीतिक या सरकारी दबाव में न आए। मदनी का आरोप है कि वर्तमान समय में अदालतें दबाव में काम कर रही हैं, जिससे न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है।

Mahmood Madani: जिहाद शब्द के प्रयोग पर मदनी का स्पष्टीकरण

अपने संबोधन में मौलाना मदनी ने “जिहाद” शब्द के मौजूदा संदर्भों में उपयोग पर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि इस शब्द को गलत और भ्रामक तरीके से परिभाषित किया जा रहा है, जबकि इस्लाम में जिहाद का अर्थ अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष है। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक उत्पीड़न और जुल्म मौजूद रहेंगे, तब तक जिहाद भी रहेगा, क्योंकि यह धार्मिक रूप से न्याय और समानता के लिए खड़े होने का प्रतीक है।

Mahmood Madani: इस्लाम को बदनाम करने की कोशिशों का आरोप

मदनी ने दावा किया कि आज के समय में “लव जिहाद”, “लैंड जिहाद” और “स्पिट जिहाद” जैसे शब्दों का उपयोग करके इस्लाम को बदनाम किया जा रहा है। उनके अनुसार, ये शब्द वास्तविकता से दूर हैं और मुस्लिम समुदाय को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने नागरिकों से आग्रह किया कि वे अफवाहों और नकारात्मक प्रचार के आधार पर किसी भी समुदाय का मूल्यांकन न करें।

मुस्लिम समाज के प्रति जनमानस पर टिप्पणी

मौलाना मदनी ने समाज में मुस्लिम समुदाय को लेकर लोगों की सोच पर भी बात की। उनके अनुसार, देश में लगभग 10 प्रतिशत लोग मुसलमानों के प्रति सकारात्मक रुख रखते हैं, जबकि लगभग 30 प्रतिशत लोग इनके खिलाफ हैं। वहीं, 60 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो न तो खुलकर विरोध करते हैं और न समर्थन, बल्कि चुपचाप परिस्थितियों को देखते रहते हैं। उन्होंने कहा कि यही चुप्पी अक्सर गलत धारणाओं और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देती है।

ज्ञानवापी फैसलों को लेकर भी की टिप्पणी

मदनी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी तथा अन्य संवेदनशील धार्मिक मामलों में दिए गए फैसलों पर असहमति जताई। उनका कहना है कि अदालत ने संविधान की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए निर्णय नहीं दिए, जिससे न्यायिक निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा तभी बरकरार रह सकती है जब वह संविधान के अनुरूप निर्णय दे और सभी पक्षों के साथ न्याय करे।

संविधानिक मर्यादा पर जोर

अपने वक्तव्य के अंत में मौलाना मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तभी “सुप्रीम” कहलाने की हकदार है, जब वह संविधान के सिद्धांतों को सबसे ऊपर रखकर काम करे। यदि अदालत किसी भी प्रकार के बाहरी प्रभाव में निर्णय लेती है तो उसकी गरिमा और विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे। उन्होंने देश के नागरिकों से भी अपील की कि वे संविधान और न्याय व्यवस्था में विश्वास बनाए रखें, लेकिन किसी भी असंगत निर्णय पर सवाल उठाना भी लोकतांत्रिक अधिकार है।

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