Gorkha Issue: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर गोरखा मुद्दों पर केंद्र सरकार की हालिया कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने राज्य सरकार से कोई परामर्श किए बिना गोरखा वार्ताकार की नियुक्ति कर दी, जो न केवल संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ है, बल्कि पहाड़ी क्षेत्रों में शांति और सद्भाव के लिए भी खतरा पैदा कर सकती है।
वार्ताकार की नियुक्ति पर जताई आपत्ति
सीएम ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में स्पष्ट रूप से कहा, “मैं गोरखाओं से संबंधित मुद्दों के लिए केंद्र सरकार द्वारा एकतरफा तौर पर वार्ताकार नियुक्त किए जाने पर हैरान हूं। पश्चिम बंगाल सरकार का मानना है कि जीटीए (गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन) और उससे जुड़े संवेदनशील मामलों में किसी भी तरह की पहल राज्य सरकार के परामर्श और सहभागिता के बिना नहीं की जानी चाहिए।”उन्होंने यह भी जोड़ा कि “इस प्रकार की कोई भी एकतरफा कार्रवाई पहाड़ी इलाकों में कड़ी मेहनत से कायम हुई शांति को प्रभावित कर सकती है। बिना राज्य सरकार की भागीदारी के कोई मध्यस्थ नियुक्त करना भारत के संघीय ढांचे की आत्मा के खिलाफ है।”
जीटीए का इतिहास और महत्व
मुख्यमंत्री ने पत्र में जीटीए के गठन का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि “गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन का गठन 18 जुलाई 2011 को एक त्रिपक्षीय समझौते के बाद हुआ था। यह समझौता भारत सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) के बीच किया गया था, जिसमें तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री और राज्य की मुख्यमंत्री मौजूद थीं।”जीटीए का उद्देश्य पहाड़ी क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और भाषाई विकास को बढ़ावा देना था। साथ ही गोरखा समुदाय की पहचान को सुरक्षित रखते हुए सभी समुदायों के बीच एकता और सद्भाव को मजबूत करना था।
2011 के बाद से बहाल हुई शांति
सीएम ममता बनर्जी ने यह भी दावा किया कि “2011 में हमारी सरकार के सत्ता में आने के बाद पहाड़ी जिलों में जो शांति और सौहार्द कायम हुआ है, वह निरंतर प्रयासों का नतीजा है। हम गोरखा समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हैं और उनके हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।”उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार आगे भी इस दिशा में सकारात्मक प्रयास जारी रखेगी, लेकिन केंद्र को किसी भी फैसले से पहले राज्य सरकार से परामर्श करना चाहिए।ममता बनर्जी का यह पत्र न केवल गोरखा मुद्दों की संवेदनशीलता को उजागर करता है, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच बढ़ते टकराव को भी सामने लाता है। गोरखा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए अब यह देखना अहम होगा कि केंद्र सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है।
