Manoj Kumar Death: अपने अभिनय और देशभक्ति से जुड़ी फिल्मों के लिए मशहूर भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे. 4 अप्रैल को उनका निधन हो गया. उनके निधन के खबर सामने आते ही सिनेमा जगत में शोक की लहर दौड़ गई। मनोज कुमार को उनकी अनूठी अदाकारी और फिल्मों में देशभक्ति के चित्रण के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनका दिल छू लेने वाला अंदाज और सॉफ्ट आवाज़ भारतीय सिनेमा का अहम हिस्सा बन चुकी थी।
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मनोज कुमार का फिल्मी करियर
बताते चले कि, मनोज कुमार का फिल्मी करियर किसी संघर्ष से कम नहीं था। 1947 में बंटवारे के बाद परिवार के साथ भारत पहुंचे मनोज कुमार ने 1957 में फिल्मी दुनिया में कदम रखा। हालांकि शुरुआत में सफलता उन्हें नहीं मिली, लेकिन 1961 में “कांच की गुड़िया” और इसके बाद “पिया मिलन की आस” और “सुहाग सिंदूर” जैसी फिल्मों में लीड रोल करने के बाद उन्होंने सफलता का स्वाद चखा। 1962 में “हरियाली और रास्ता” और “वो कौन थी” जैसी फिल्मों ने उनकी सफलता को और बढ़ावा दिया।
देशभक्ति फिल्मों में मनोज कुमार का योगदान
1965 में आई फिल्म “भगत सिंह” ने मनोज कुमार को देशभक्ति का प्रतीक बना दिया। इस फिल्म ने उन्हें न केवल दर्शकों का दिल जीता, बल्कि समीक्षकों की भी वाहवाही बटोरी। इसके बाद उन्होंने “उपकार” जैसी फिल्म बनाई, जो किसानों और जवानों के संघर्ष पर आधारित थी और इस फिल्म ने उन्हें खास पहचान दिलाई। इस फिल्म के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मनोज कुमार को एक और देशभक्ति फिल्म बनाने की सलाह दी, जिससे “उपकार” जैसी फिल्में दर्शकों के बीच समृद्ध हो गईं।
सात फिल्म फेयर अवार्ड्स और पद्मश्री से सम्मानित
मनोज कुमार का फिल्मी करियर 1980 के दशक तक अपने चरम पर था, लेकिन 1987 के बाद उनका करियर धीमा पड़ गया। “कलयुग”, “रामायण”, “संतोष” और “क्लर्क” जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। इसके बाद उन्होंने अभिनय से संन्यास लेने का फैसला किया। हालांकि, फिल्म निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में उनका योगदान अविस्मरणीय रहा। उनके योगदान के लिए उन्हें सात फिल्म फेयर अवार्ड्स और 1992 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
राजनीति में भी किस्मत आजमाई
अदाकारी से अलविदा लेने के बाद मनोज कुमार ने 2004 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से उम्मीदवार बनकर राजनीति में भी कदम रखा, लेकिन उन्हें वहां सफलता नहीं मिली। राजनीति में उनकी उपस्थिति का असर सीमित था, लेकिन सिनेमा में उनका योगदान अपार था।मनोज कुमार ने लंबे समय तक बीमारियों से संघर्ष किया। उन्हें लिवर की गंभीर बीमारी का इलाज चल रहा था और 21 फरवरी को उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था। डॉक्टरों ने उन्हें लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर स्थिति का सामना करने की जानकारी दी थी। बावजूद इसके, वे इलाज जारी रखते हुए अपनी फिल्मों के जरिए हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।