Mahatma Gandhi Death Anniversary 2025: हर साल 30 जनवरी को भारत में शहीद दिवस मनाया जाता है, जहां हम महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या एक दुखद और महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता को खो दिया। उनकी हत्या को लेकर नाथूराम गोडसे को दोषी ठहराया गया था, और इस कृत्य के पीछे के कारणों को आज भी समझने की कोशिश की जाती है। आइए जानें कि महात्मा गांधी की हत्या किसने की और क्यों।
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गांधी की हत्या का दोषी

नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को बारामती, महाराष्ट्र में हुआ था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बाद में हिंदू महासभा से जुड़े थे। गोडसे हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थक थे और उनका मानना था कि गांधीजी की नीतियां हिंदू विरोधी थीं, विशेष रूप से उनकी पाकिस्तान के प्रति नरम रुख और विभाजन के बाद के उनके फैसले को लेकर। गोडसे का मानना था कि गांधी ने हिंदुओं के हितों को अनदेखा कर मुसलमानों के पक्ष में काम किया, जिससे देश के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
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महात्मा गांधी की हत्या के कारण

नाथूराम गोडसे का मानना था कि गांधी जी की नीतियां देश को नुकसान पहुंचा रही थीं। उनका आरोप था कि गांधी ने पाकिस्तान के प्रति अत्यधिक स्नेह दिखाया, जिससे हिंदू समाज में असंतोष पैदा हुआ। गांधी जी ने पाकिस्तान से होने वाली हिंसा और पीड़ा के बावजूद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए की रकम देने के लिए भूख हड़ताल की थी, जिसे गोडसे ने एक नापाक कदम के रूप में देखा।गोडसे का कहना था कि गांधी जी का यह कदम हिंदू समाज के खिलाफ था, और इस कारण उन्होंने गांधी की हत्या को देश के हित में एक जरूरी कदम माना। उनका विश्वास था कि गांधी को हटाने से ही देश की समस्याओं का समाधान हो सकता था।
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नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या कैसे की?

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी दिल्ली के बिड़ला हाउस में अपनी रोजाना की प्रार्थना सभा में जा रहे थे। उस समय शाम के करीब 5 बजे थे, जब नाथूराम गोडसे ने एक भयंकर कदम उठाया। जैसे ही गांधी जी प्रार्थना स्थल पर पहुंचे, गोडसे ने उनसे कुछ कदम की दूरी पर खड़े होकर उन्हें तीन गोलियां मार दी। गोली लगते ही गांधी जी गिर पड़े और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
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नाथूराम गोडसे की गिरफ्तारी
गांधी जी की हत्या के तुरंत बाद नाथूराम गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। अदालत में गोडसे ने अपने कृत्य का बचाव किया और अपने विचारों को सामने रखा, लेकिन अंततः उन्हें दोषी ठहराया गया। 1949 में नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा दी गई।