Mathura Shahi Idgah : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की अर्जी खारिज करते हुए कहा है मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को ‘विवादास्पद स्मारक’ नहीं माना जाएगा। यानी स्मारक को फिलहाल मस्जिद ही माना जाएगा।
मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई
मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर विवाद लंबे समय से चल रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस संबंध में कई मामले चल रहे हैं। कुछ दिन पहले हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि मस्जिद को अब मस्जिद न मानकर ‘विवादास्पद स्मारक’ माना जाए। आने वाले दिनों में हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस दायर कर मांग की है कि इस मामले के सभी दस्तावेजों में मस्जिद को विवादास्पद स्मारक के तौर पर दिखाया जाए। इस पर मुस्लिम पक्ष ने लिखित में आपत्ति जताई। उनके मुताबिक, उस जगह पर फिलहाल मस्जिद है। इसमें किसी को शक नहीं है। इसलिए स्मारक की आधिकारिक मान्यता में किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।
हिंदू पक्ष की अर्जी खारिज
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने मामले में हिंदू पक्ष की अर्जी खारिज कर दी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुसलमानों की आपत्ति को गंभीरता से लेते हुए मस्जिद को ‘विवादित स्मारक’ घोषित करने पर आपत्ति जताई। दरअसल, आध्यात्मिक नगरी मथुरा में कई प्राचीन मंदिर हैं। हिंदुओं का मानना है कि यह स्थान भगवान कृष्ण का जन्म स्थान है। शाही ईदगाह मस्जिद उसी मंदिर के परिसर में स्थित है।
इतिहासकारों का एक वर्ग दावा करता है कि औरंगजेब ने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी। 1935 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंदिर परिसर का स्वामित्व मथुरा के राजा को सौंप दिया। धीरे-धीरे वह स्वामित्व श्री कृष्णभूमि ट्रस्ट के पास चला गया, जो विश्व हिंदू परिषद के करीब है। नतीजतन, दोनों धर्मों के लोगों के बीच स्वाभाविक रूप से संघर्ष पैदा हो गया। अंततः 1968 में एक समझौते के माध्यम से मुसलमानों को मस्जिद के रखरखाव का अधिकार मिला, हालांकि भूमि का स्वामित्व हिंदुओं के हाथ में था।