Mohan Bhagwat : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में दिल्ली में तीन दिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम के पहले दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मौजूद लोगों को संघ की मूल विचारधारा और उद्देश्यों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि संघ को लेकर समाज में कई धारणाएं बनी हुई हैं, परंतु सच्चाई कुछ और है। उन्होंने कहा, “संघ को समझने के लिए किसी की राय पर नहीं, बल्कि तथ्यात्मक जानकारी पर ध्यान देना चाहिए। संघ की सोच है सभी को साथ लेकर चलने की।”
संघ का उद्देश्य देश को सशक्त बनाना
भागवत ने संघ के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने RSS की स्थापना की थी। उनका मानना था कि स्वतंत्र भारत के निर्माण के लिए समाज को संगठित और आत्मनिर्भर बनाना अत्यंत आवश्यक है। वे केवल एक विचारधारा से नहीं जुड़े थे, बल्कि उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन, कांग्रेस, समाज सुधार और सामाजिक कार्य – चारों क्षेत्रों में सक्रिय योगदान दिया। संघ का मुख्य उद्देश्य भारत को मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है।
एकता, समन्वय और भाईचारा ही संघ की आत्मा
संघ के विचारों को स्पष्ट करते हुए भागवत ने कहा कि भारत की संस्कृति में समन्वय, एकता और भाईचारे के गुण सदियों से विद्यमान हैं। संघ का मानना है कि जो लोग मिलकर रहते और साथ चलते हैं, वे ही हिंदू हैं। यह शब्द किसी विशेष धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “हमारा स्वाभाविक धर्म है समन्वय, न कि संघर्ष। भारत में हजारों वर्षों से सांस्कृतिक रूप से हम एक हैं और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।”
“संघ किसी के विरोध में नहीं”
संघ प्रमुख ने स्पष्ट किया कि संघ की स्थापना किसी के विरोध में नहीं हुई थी। उन्होंने बताया कि संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) से एक बार सवाल पूछा गया कि जिस गांव में अल्पसंख्यक नहीं रहते, वहां शाखा की क्या जरूरत है। इस पर उन्होंने जवाब दिया था कि “अगर दुनिया में कोई दूसरा धर्म न होता, तब भी हिंदू समाज की स्थिति ऐसी है कि संघ की आवश्यकता थी।” भागवत ने 1948 की एक घटना का उल्लेख किया जब गुरुजी के घर पर हमला हुआ था। स्वयंसेवकों ने सुरक्षा दी, लेकिन गुरुजी ने कहा, “यह समाज अपना है, मेरा खून बह जाए, समाज का नहीं।”
“संघ का सपना एकजुट और शांतिपूर्ण भारत”
संघ प्रमुख ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि संघ का मूलमंत्र ‘एकता’ है। यह संगठन चाहता है कि भारत में सभी समुदायों हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, सिख में समन्वय बना रहे। समाज में यदि एकता और भाईचारा रहेगा तो देश स्वाभाविक रूप से प्रगति करेगा। संघ का उद्देश्य टकराव नहीं, बल्कि सहयोग से भारत को सुखी, शक्तिशाली और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना है।
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