Monsoon season: भारत में मॉनसून की शुरुआत, ‘मौसिम’ शब्द से बना…इतने प्रतिशत कृषि है इस पर निर्भर

Aanchal Singh
Monsoon season
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Monsoon season: भारतीय मौसम विभाग की माने तो इस साल भारत में मॉनसून ने समय से पहले ही दस्तक दे दी है. ऐसे में इसे लेकर लोगो में उत्साह भी देखने को मिल रहा है क्योंकि मई-जून की तपिश में मॉनसून के आने से गर्मी से निजात मिलती है। मॉनसून नामक शब्द अरबी अक्षर ‘मौसिम’ से होकर आया है, जिसका मतलब होता है मौसम। ये साल भर में अपने दिशा में बदलाव करती है।

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भारत समेत इन देशों पर भी डालता है असर…

भारत समेत इन देशों पर भी डालता है असर...

बताते चलें कि,भारत में मॉनसून मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम दिशा से होकर आता है साथ ही ये अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेता हुआ देश के बहुत से हिस्सों में भारी बारिश कराता है।मॉनसून का प्रभाव न सिर्फ भारत में बल्कि दक्षिण एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के कई हिस्सों तक फैला हुआ है।

ऐसे होती है मॉनसून की शुरूआत…

जब समुद्र और धरती के तापमान में अंतर दिखने लगता है तब मॉनसून की शुरुआत होती है. गर्मी के मौसम में जब भारतीय उपमहाद्वीप बहुत गर्म होती है तब वहां अलग- अलग वायुदाब बनने लगते हैं। ठीक इसी के विपरीत अगर बात करें हिंद महासागर की तो वह बहुत ही ठंडा रहता है जिसकी वजह से वहां उच्च वायुदाब इलाका बनता है.इसी दबाव के अंतर होने की वजह से समुद्र से हवा चलकर धरती की तरफ आती है और ये हवाएं अपने साथ नमी भी लेकर आती है, जिससे बारिश होती है और इसी प्रक्रिया को मॉनसून के नाम से जाना जाता है।

मॉनसून पर निर्भर होने की वजह…

मॉनसून पर निर्भर होने की वजह...

भारत के मॉनसून पर ज्यादा निर्भर होने की वजह ये है कि,60% से अधिक कृषि भूमि वर्षा पर निर्भर है. बहुत सी फसलें जैसे कि धान, गन्ना, दालें और कपास की उपज सीधे तौर पर मॉनसून की तीव्रता और समय पर निर्भर करती है।

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मॉनसून से जुड़े जरूरी बिंदु…

  • मॉनसून भारत में जून से लेकर सितंबर तक सक्रिय रहता है. ये चार महीने देश की जलवायु, कृषि और आम जनजीवन पर असर डालता है।
  • हर वर्ष मॉनसून से पहले ही नगर निगम और राज्य प्रशासन जल निकासी व्यवस्था, नालों की सफाई, आपदा नियंत्रण केंद्रों की स्थापना और खतरनाक इमारतों की पहचान जैसे कार्यों में जुट जाते हैं।
  • भारी बारिश की वजह से अक्सर बाढ़, भूस्खलन और शहरी जलजमाव जैसी परेशानियां आती हैं।मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में यह आम समस्या है।
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