MP News: पन्ना टाइगर रिज़र्व की सबसे पुरानी हथिनी ‘वत्सला’ मंगलवार को 100 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह विगत कई दशकों से रिजर्व का अभिन्न हिस्सा थी और वन्यजीव प्रेमियों तथा रिजर्व कर्मचारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही। इस दुखद घटना से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है।
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केरल से 1971 में लाई गई थी ‘वत्सला’
जानकारी के अनुसार, ‘वत्सला’ को साल 1971 में केरल से पन्ना टाइगर रिज़र्व लाया गया था। तब से यह हथिनी वन क्षेत्र की सुरक्षा और जीवन का अहम हिस्सा बनी हुई थी। अपनी सौम्यता और बुद्धिमत्ता के कारण ‘वत्सला’ ने कई पीढ़ियों को देखा और प्रभावित किया।
नाखून टूटने से चोटिल हुई थी ‘वत्सला’
आपको बता देकि, कुछ दिन पहले ‘वत्सला’ का नाखून टूटने से वह चोटिल हो गई थी, जिससे उसकी सेहत बिगड़ गई। इस चोट ने उसकी उम्र और कमजोरी के कारण उसकी हालत को और भी नाजुक बना दिया। मंगलवार सुबह जब वह बैठी, तो वह दोबारा खड़ी नहीं हो सकी।
वन विभाग और पशु चिकित्सकों की कोशिशें रही नाकाम
वन विभाग के अधिकारियों और पशु चिकित्सकों ने ‘वत्सला’ की हालत सुधारने के लिए पूरी कोशिश की, लेकिन उसकी उम्र और शारीरिक कमजोरी के चलते उसे बचाया नहीं जा सका। उसकी मौत से वन्यजीव प्रेमी और कर्मचारी काफी दुखी है.
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जताया शोक
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने ‘वत्सला’ के निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वत्सला मात्र हथिनी नहीं थी, बल्कि जंगल की मूक संरक्षक थी। उन्होंने इसे टाइगर रिजर्व की एक प्रिय सदस्य बताया, जिसने हाथियों के दल का नेतृत्व किया और बच्चों की देखभाल की।
टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने व्यक्त किया दुख
पन्ना टाइगर रिज़र्व के अधिकारी भी ‘वत्सला’ के निधन से स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा कि उसकी सौम्यता, बुद्धिमत्ता और वर्षों की सेवा की यादें हमेशा वन क्षेत्र और लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगी। वन विभाग ने वत्सला को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है।
पन्ना टाइगर रिजर्व की शान थी ‘वत्सला’
‘वत्सला’ न केवल अपनी उम्र की वजह से प्रसिद्ध थी, बल्कि अपने शांत स्वभाव और वन क्षेत्र के प्रति समर्पण के लिए भी वह सभी के लिए प्रेरणा थी। उसने अपने जीवनकाल में कई पीढ़ियों को देखा और जंगल के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वन्यजीव प्रेमियों और कर्मचारियों का दुख
वन्यजीव प्रेमी और रिज़र्व कर्मचारी ‘वत्सला’ के निधन से गहरे सदमे में हैं। वे कहते हैं कि वह जंगल का वह हिस्सा थी, जिसे खोना बेहद कठिन है। उसकी यादें और योगदान हमेशा जीवित रहेंगे। ‘वत्सला’ के दीर्घ जीवन और उसके योगदान से यह स्पष्ट होता है कि वन्यजीव संरक्षण कितनी जरूरी है। प्राकृतिक धरोहरों को संरक्षित करना और उनकी देखभाल करना हम सभी की जिम्मेदारी है ताकि ऐसी महत्वपूर्ण प्रजातियां सदैव जीवित रह सकें।
पन्ना टाइगर रिजर्व के प्रिय सदस्य को अंतिम विदाई
‘वत्सला’ के जाने से पन्ना टाइगर रिज़र्व को एक महत्वपूर्ण सदस्य खोना पड़ा है। उसकी यादें, उसकी कहानी और उसका योगदान सदैव वन्यजीव प्रेमियों के दिलों में बसा रहेगा। वन विभाग और पूरे क्षेत्र की ओर से उसे विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई है।
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