Muharram 2025: इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना यानी मुहर्रम शुरू हो चुका है। मुहर्रम का महीना इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शामिल है। इस महीने से मुस्लिमानों का नया साल भी शुरू हो जाता है। मुहर्रम का 10वां दिन मुसलमानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दिन को सभी मुसलमान अलग अलग तरीके से मनाते हैं। ऐसे में हम आपको मुहर्रम के पाक महीने से जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं साथ ही आपको यह भी बताएंगे कि इस महीने शिया मुसलमान मातम क्यों मनाते हैं।
मुहर्रम की दसवीं तारीख यानी आशूरा के दिन दुनियाभर के मुसलमान एहतिमाम करेंगे। यौम-ए-आशूरा का दिन मुसलमानों के लिए मातम भरा दिन होता है। ये दिन खासकर शिया मुसलमानों के लिए अहम होता है। मुहर्रम महीने के शुरुआती 9 दिनों में रोजाना मजलिस की जाती है और फिर इस महीने के दसवें दिन जुलूस निकाला जाता है, जिसमें शिया मुसलमान खुद को चोट पहुंचाते हैं। शिया मुसलमानों के ऐसा करने के पीछे का कारण कर्बला की जंग है।
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मुसलमान क्यों मनाते हैं मोहर्रम?

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार सन् 61 हिजरी में मुहर्रम की 10वीं तारीख यानी यौम-ए-आशूरा के दिन कर्बला में एक जंग हुई। इस जंग में इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने अपने 72 वफादारों और परिवार के साथ अपनी जान कुर्बान कर दी। बता दें कि इमाम हुसैन की ये जंग यजीद नाम के एह जालिम बादशाह से थी। जिसने कर्बला में मासूम बच्चों तक को नहीं बख्शा था।
मजलिस भी करते हैं
कर्बला की उसी जंग को याद करते हुए मुहर्रम के महीने में दुनियाभर के मुसलमान अलग अलग तरीकों से अपने दुख को बयां करते हैं और मातम भी मनाते हैं आशूरा के दिन शिया मुसलमान खुद को चोट पहुंचाकर अपना ही खून बहाते हैं मातम के दौरान वे अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं और ताजिये भी निकालते हैं साथ ही मजलिस कर उस जुल्म की दास्तान का भी जिक्र लोगों से करते हैं।
शिया क्यों मनाते हैं मातम?
ऐसा कहा जाता है कि कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनके घर की औरतों और बच्चों को एक जेल में कैद कर दिया गया, जहां वे सबएक साल तक कैद रहे। सन् 62 हिजरी में जब उन्हें कैद से आजादी मिली तो इमाम हुसैन की बहन हजरत जैनब ने यजीद से अपने भाई की शहादत का मातम मनाने के लिए कहा।
इस दिन कैदखाने में पहली बार मातम मनाया गया। जिसके बाद शिया समुदाय मातम मनाता चला आ रहा है। यहीं से आशूरा के दिन मातम मनाने की परंपरा शुरू हुई। कर्बला की इसी दुख भरी दास्तान को याद करते हुए शिया मुसलमान मजलिस करते हैं। मजलिस में उस जुल्म को याद कर मातम मनाते हैं और अपना सीना भी पीटते हैं।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां पौराणिक कथाओं,धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। खबर में दी जानकारी पर विश्वास व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और विवेक पर निर्भर करता है। प्राइम टीवी इंडिया इस पर दावा नहीं करता है ना ही किसी बात पर सत्यता का प्रमाण देता है।

