Muharram 2025: मुहर्रम का महीना इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है, जिसे कई लोग नए साल की शुरुआत के रूप में देखते हैं। शिया मुसलमानों के लिए यह समय गहरे गम, मातम और शहादत की यादों का प्रतीक होता है। इस महीने को वे इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला में हुई शहादत की याद में श्रद्धा और दुख के साथ मनाते हैं।
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इमाम हुसैन की शहादत

इस्लामी इतिहास की सबसे मार्मिक घटनाओं में से एक है कर्बला की जंग, जो अत्याचारी शासक यज़ीद और सच्चाई व न्याय के प्रतीक इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई थी। यह जंग केवल एक सत्ता संघर्ष नहीं थी, बल्कि धर्म, न्याय और इंसानियत की रक्षा के लिए दिया गया बलिदान था। इस युद्ध में इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे। उनकी शहादत को याद करते हुए शिया समुदाय हर साल गमगीन माहौल में मुहर्रम का त्योहार मनाते हैं।
काले कपड़ों का महत्व
शिया मुसलमानों के द्वारा काले कपड़े पहनने की परंपरा इसी शहादत से जुड़ी हुई है। काले कपड़े पहनना गम, मातम और प्रतिरोध का प्रतीक माना जाता है। कर्बला की जंग के बाद जब इमाम हुसैन के चाहने वालों ने यज़ीद की बर्बरता का विरोध करना शुरू किया, तो उन्होंने काले वस्त्र पहनकर अपना शोक और प्रतिरोध व्यक्त किया। यह रंग सिर्फ दुख और श्रद्धांजलि का है। इसीलिए मुहर्रम के दिनों में न तो कोई रंग-बिरंगी सजावट होती है और न ही कोई उल्लास। सिर्फ शांति, सादगी और मातम का माहौल होता है।
पैगंबर मोहम्मद साहब और काले वस्त्र
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद साहब ने भी कई खास अवसरों पर काले रंग की पगड़ी पहनी थी। खासतौर पर ‘फतह-ए-मक्का’ के समय उन्होंने काले रंग को अपनाया था, जो एक प्रतीक था धर्म की ताकत और सच्चाई की जीत का। इसी वजह से शिया समुदाय इस रंग को विशेष महत्व देता है और मुहर्रम के दौरान इसे अपनाता है।

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