Mumbai Train Blast 2006: 2006 में मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सभी 12 दोषियों को बरी कर दिया है, जिन्हें पहले विशेष अदालत ने दोषी ठहराकर फांसी और उम्रकैद की सजा दी थी। हाईकोर्ट ने पाया कि इन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त और भरोसेमंद सबूत नहीं थे, जिसके चलते उन्हें दोषमुक्त करार दिया गया।
ओवैसी ने उठाए जांच एजेंसियों पर सवाल
बताते चले कि, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले के बाद तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सरकार और जांच एजेंसियों पर निशाना साधते हुए सवाल किया कि क्या अब उन अधिकारियों पर कार्रवाई होगी, जिन्होंने इन निर्दोषों को झूठे मुकदमे में फंसाया? उन्होंने कहा कि इन लोगों ने अपनी जिंदगी के 17 से 18 साल जेल में बिताए और अब जब उन्हें रिहा किया गया, तो उनकी जिंदगी का सबसे सुनहरा समय पीछे छूट चुका है।
मीडिया ट्रायल और पुलिसिया रवैये पर भी निशाना
इसी कड़ी में आगे, ओवैसी ने कहा कि जब ऐसे मामलों में जनाक्रोश होता है, तब पुलिस पहले ही लोगों को दोषी मान लेती है और मीडिया भी उन्हें अपराधी की तरह पेश करता है। उन्होंने कहा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पुलिस ऐसे मामलों में अपना पक्ष पहले ही रख देती है और निष्पक्ष जांच की प्रक्रिया प्रभावित होती है। यह हमारे न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
आरोपियों के परिवारों की टूटती जिंदगियां
ओवैसी ने बताया कि इन 12 मुस्लिम पुरुषों में से कई के परिवार इस दौरान पूरी तरह टूट गए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि फैसल और मुजम्मिल नामक दो भाइयों को उम्रकैद की सजा मिली थी, जिसके बाद उनके पिता को दिल का दौरा पड़ा और मौत हो गई। 2023 में उनकी मां की भी मृत्यु हो गई। मोहम्मद माजिद की पत्नी अपने पति से अंतिम बार बात किए बिना ही चल बसीं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने बताया सच्चाई की जीत
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने हाईकोर्ट के फैसले को ‘सत्य और न्याय की जीत’ करार दिया। उन्होंने कहा कि यह सफलता उनकी लीगल टीम के लगातार प्रयासों का नतीजा है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की जिम्मेदारी अब न्यायपालिका निभा रही है और निर्दोषों को फंसाने वालों को सज़ा दिए बिना न्याय अधूरा रहेगा।
2006 के धमाकों में 189 की मौत, 824 घायल
गौरतलब है कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में 7 अलग-अलग जगह धमाके हुए थे, जिनमें 189 लोगों की जान चली गई थी और 824 लोग घायल हुए थे। 2015 में विशेष अदालत ने 12 लोगों को दोषी ठहराकर कठोर सजा सुनाई थी। इनमें से एक आरोपी की 2022 में जेल में कोविड से मौत हो गई थी। लेकिन अब, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज कर सभी को बरी कर दिया है।