National Press Day 2025: भारत में हर साल 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India) की स्थापना और 1966 से इसके कार्यारंभ की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस के महत्व को रेखांकित करना है। साथ ही, पत्रकारिता के मूल्यों को बनाए रखना और निष्पक्ष पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना भी इस दिन का प्रमुख लक्ष्य है।
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पत्रकारिता का प्रेरणादायक किस्सा

भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में कई साहसिक घटनाएं दर्ज हैं। इनमें से एक बेहद रोचक और प्रेरणादायक घटना उस अखबार की है जिसने अंग्रेजी हुकूमत के दबाव में झुकने के बजाय रातोंरात अपनी पहचान बदल ली। यह घटना भारतीय प्रेस की दृढ़ता और स्वतंत्रता की मिसाल बन गई।
1878 का काला अध्याय
साल 1878 भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड लिटन थे, जिनका शासन दमनकारी नीतियों के लिए कुख्यात था। उस दौर में भारतीय भाषाओं में कई अखबार प्रकाशित होते थे जिन्हें वर्नाक्यूलर प्रेस कहा जाता था। ये अखबार अंग्रेजी हुकूमत की नीतियों के खिलाफ मुखर रहते थे और जनता की आवाज बनते थे।
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
लॉर्ड लिटन ने इन अखबारों को दबाने के लिए वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू किया। इसे “गैगिंग एक्ट” या “मुंह बंद करने वाला कानून” भी कहा जाता था। इस कानून के तहत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया कि वह किसी भी देशी भाषा के अखबार के प्रकाशक से शपथ ले सकता है कि वह सरकार के खिलाफ कोई सामग्री प्रकाशित नहीं करेगा। यदि कोई अखबार सरकार विरोधी सामग्री प्रकाशित करता तो उसकी सुरक्षा राशि जब्त कर ली जाती और उसके खिलाफ कोई अपील भी नहीं की जा सकती थी। खास बात यह थी कि यह कानून केवल भारतीय भाषाओं के अखबारों पर लागू होता था, अंग्रेजी अखबार इससे मुक्त थे।
अमृत बाजार पत्रिका की चुनौती
इस दमनकारी कानून की चपेट में अमृत बाजार पत्रिका भी आ गई। यह अखबार मूल रूप से बंगाली भाषा में प्रकाशित होता था और अपनी बेबाक आलोचना के लिए मशहूर था। इसे 1868 में शिशिर कुमार घोष और उनके भाइयों ने शुरू किया था। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू होने के बाद अखबार के संपादकों के सामने दो विकल्प थे—या तो सरकार के सामने झुक जाएं या फिर भारी जुर्माना और बंद होने का जोखिम उठाएं।
रातोंरात अंग्रेजी अखबार में बदल गया
अमृत बाजार पत्रिका ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने झुकने से इनकार कर दिया। उन्होंने साहसिक कदम उठाते हुए अखबार को रातोंरात बंगाली से अंग्रेजी भाषा में बदल दिया। इस तरह यह अखबार वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के दायरे से बाहर हो गया और अपनी निर्भीक पत्रकारिता जारी रखी। अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होकर भी इसने सरकार की आलोचना जारी रखी और दमनकारी नीति की धज्जियां उड़ा दीं।
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