Naxal Surrender Chhattisgarh: बुधवार का दिन सुरक्षा बलों के लिए दोहरी सफलता लेकर आया। एक ओर झारखंड के गुमला ज़िले में एक शीर्ष माओवादी नेता सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में मारा गया, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में 9 माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। बीजापुर के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र कुमार यादव ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वालों में कई इनामी नक्सली भी शामिल हैं, जिनके सिर पर कुल 24 लाख रुपये तक का इनाम था।
बक्सू वाम समेत 6 इनामी नक्सलियों ने छोड़ा संगठन
आत्मसमर्पण करने वालों में बक्सू वाम (27) शामिल है, जो माओवादी संगठन के माद डिवीज़न से जुड़ा था और जिसके ऊपर 8 लाख रुपये का इनाम घोषित था। इसके अलावा बुधराम पोटाम (36) और हिडमा उर्फ हिरिया (26) जैसे एरिया कमेटी सदस्य, जिनके सिर पर 5-5 लाख रुपये का इनाम था, उन्होंने भी हथियार डाल दिए। बाकी के नक्सलियों पर भी अलग-अलग स्तर के इनाम घोषित थे।
क्यों लौटे मुख्यधारा में?
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, आत्मसमर्पण का कारण संगठन के भीतर विचारधारा का ह्रास, आंतरिक कलह, और आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों से गहराई से आहत होना था। उन्होंने कहा कि आत्मसमर्पण करने वाले अब मुख्यधारा से जुड़कर सामाजिक कार्यों में भाग लेना चाहते हैं और सरकार की पुनर्वास नीति का लाभ उठाएंगे।
मई 2026 तक माओवाद मुक्त भारत का लक्ष्य
गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही घोषणा कर दी है कि केंद्र सरकार का लक्ष्य मई 2026 तक देश को माओवाद से पूरी तरह मुक्त करना है। इसी दिशा में जारी अभियान के तहत इस वर्ष छत्तीसगढ़ में अब तक 227 माओवादी मारे जा चुके हैं, जिनमें 208 केवल बस्तर रेंज से थे।
बस्तर रेंज बना माओवादियों का कब्रगाह
बस्तर संभाग के बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बस्तर, कांकेर और कोंडागांव जिलों में सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच मुठभेड़ लगातार जारी हैं। ये इलाके लंबे समय से नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों की आक्रामक रणनीति और माओवादियों की गिरती पकड़ के कारण हालात तेजी से बदल रहे हैं।
सुरक्षा बलों और पुनर्वास नीति का असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार की पुनर्वास नीति, जिसमें आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को आवास, रोजगार और सुरक्षा प्रदान की जाती है, ने भी इस बदलाव में अहम भूमिका निभाई है। बीजापुर जैसे इलाके, जो कभी माओवादियों का गढ़ हुआ करते थे, अब शांति और विकास की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।बीजापुर में 9 माओवादियों का आत्मसमर्पण न केवल एक सुरक्षा सफलता है, बल्कि यह संकेत भी है कि माओवादी आंदोलन अपने सबसे कमजोर दौर में है। यदि यह रुझान जारी रहा, तो 2026 तक माओवाद मुक्त भारत का सपना साकार हो सकता है।

