Nepal News: नेपाल में अंतरिम सरकार की प्रधानमंत्री बनने के साथ ही सुशीला कार्की ने इतिहास में दो बार अपना नाम दर्ज करवा लिया है। पहले देश की पहली महिला चीफ जस्टिस बनकर और अब पहली महिला पीएम बनकर। 73 साल की उम्र में सुशीला कार्की नेपाल की सियासत का प्रमुख चेहरा बन गई हैं। उनका रुख भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ सख्त माना जाता है और GEN-Z का समर्थन भी उन्हें हासिल है।
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राजनीतिक पुरुष वर्चस्व को चुनौती

आपको बता दे कि, नेपाल की सियासत में हमेशा पुरुषों का ही दबदबा रहा है। सुशीला कार्की का नेतृत्व पुरानी पीढ़ीगत राजनीति से ब्रेक होने का प्रतीक है। यह जवाबदेही और सुधार के लिए भी एक संकेत है। न्यायिक क्षेत्र में उनके फैसलों ने उन्हें प्रतिष्ठा दी और अब पीएम बनने के बाद उनके सामने देश की सियासत में नई जिम्मेदारियां हैं।
राजनीतिक दलों और नेताओं के खिलाफ कड़े कदम
बताते चले कि, कार्की सुर्खियों में तब आईं जब उन्होंने राजनीतिक दलों, मंत्रियों और नेताओं के खिलाफ साहसिक निर्णय लिए। इन फैसलों से उनकी प्रतिष्ठा मजबूत हुई और नेपाल की जनता में उनका प्रभाव बढ़ा। उनका नेतृत्व भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और राजनीतिक विशेषाधिकार के खिलाफ ठोस कदम उठाने के लिए जाना जाता है।
राजनीतिक परिवार और शिक्षा का योगदान

सुशीला कार्की का जन्म 1952 में विराटनगर, शंकरपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। वे सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनकी परवरिश राजनीतिक परिवेश में हुई, उनके परिवार के संबंध नेपाली कांग्रेस के कोइराला परिवार से घनिष्ठ थे। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और वहीं उनके पति दुर्गा प्रसाद सुबेदी से मुलाकात हुई। उनके पति ने 1970 में रॉयल नेपाल एयरलाइंस विमान का हाईजैक किया था, जिस पर बाद में किताब भी लिखी गई।
न्यायिक क्षेत्र में उपलब्धियां
सुशीला कार्की ने 1978 में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की और बाद में नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनी। वे पहले ऐसे न्यायाधीश हैं जिन्होंने किसी मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजा। शेरबहादुर देउबा सरकार ने उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया, जिसे भारी विरोध के बाद वापस लेना पड़ा।
सुशीला कार्की के आगे कौन-सी चुनौतियां?
न्यायिक क्षेत्र में अनुभव के बाद अब सुशीला कार्की को सत्ता की बागडोर संभालनी है। नेपाल में उन्हें सत्ता की विरासत के रूप में संकट और चुनौती मिली है। अंतरिम पीएम के रूप में उन्हें अब न्यायपालिका की तरह ही देश की जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा और भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने होंगे।
सुशीला कार्की बनी नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री
नेपाल में Gen-Z क्रांति ने इतिहास रच दिया है। सोशल मीडिया पर बैन के बहाने एकजुट हुए युवाओं ने बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे पुराने मुद्दों के खिलाफ देश में बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया। इसी नए सवेरे की उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। शपथ लेने के बाद सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं।
उनके साथ मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण चेहरे शामिल हैं, जिनमें एनर्जी एक्सपर्ट कुलमान घिसिंग और समाजसेवी-राजनीतिज्ञ सुदन गुरुंंग भी शामिल हैं। हालांकि सुशीला कार्की प्रधानमंत्री तो बन गई हैं, लेकिन देश की बागडोर संभालने के लिए उनके सामने कई जटिल चुनौतियां हैं।
धीरे-धीरे सामान्य हो रही स्थिति

काठमांडू और अन्य शहरों में हाल के दिनों में हिंसा और कर्फ्यू के हालात देखे गए थे, लेकिन अब धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही है। सेना और पुलिस फिलहाल चौकसी बनाए हुए हैं। शनिवार तक नया कर्फ्यू आदेश जारी नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि धीरे-धीरे पाबंदियां हटाई जाएंगी। सेना ने यह भी कहा कि वह हालात पर नजर रखेगी और जरूरत पड़ने पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग करती रहेगी।
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दे
प्रधानमंत्री कार्की के सामने सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी पुरानी और जड़ें जमा चुकी समस्याओं से निपटना है। नेपाल के आम नागरिक, खासकर युवा, इन दो मुद्दों पर काफी नाराज रहे हैं। जानकारों का मानना है कि कार्की को पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। सरकार के ठेकों और नियुक्तियों में फैले भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना आवश्यक है।
बेरोजगारी को कम करने के लिए उन्हें शिक्षा-प्रशिक्षण कार्यक्रम, स्टार्टअप को बढ़ावा और निजी निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना होगा। इसके अलावा, युवा पीढ़ी जो सोशल मीडिया पर सक्रिय है, उनसे संवाद बनाना भी बेहद जरूरी है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर सुशीला कार्की अपने छह महीने के कार्यकाल में ठोस संकेत देती हैं, तो जनता का विश्वास चुनाव तक बनाए रखा जा सकता है।
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