नई दिल्ली
इतिहास के पन्ने पलटें तो साल था 1971. भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी थी. पाकिस्तान के दो टुकड़े होने वाले थे और एक नया देश बांग्लादेश नक्शे पर उभर रहा था. उस वक्त दुनिया का कूटनीतिक माहौल भारत के खिलाफ था. अमेरिका अपना सातवां बेड़ा भेज रहा था और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के लगभग सभी ताकतवर देश सऊदी अरब, ईरान, जॉर्डन मजहब के नाम पर पाकिस्तान के साथ खड़े थे. लेकिन उस घने अंधेरे में एक चिराग था जो भारत के लिए जल रहा था. वह देश था ओमान. ओमान वह मुस्लिम देश था, जिसने अरब और इस्लामिक जगत के भारी दबाव को दरकिनार करते हुए, यूएन से लेकर हर वैश्विक मंच पर भारत का खुलकर समर्थन किया था. जब सब पाकिस्तान को बचाने में लगे थे, ओमान भारत की सच्चाई के साथ खड़ा था. अगले हफ्ते, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी ओमान की धरती पर कदम रखने जा रहे हैं. 17-18 दिसंबर का यह दौरा सिर्फ फाइलों पर दस्तखत करने का नहीं, बल्कि 54 साल पुरानी उस वफादारी को नमन करने का है.
1971 की वो कहानी, जो अक्सर नहीं सुनाई जाती
1971 की जंग के दौरान पाकिस्तान ने खुद को ‘इस्लाम के किले’ के रूप में पेश किया था. अरब देशों पर भारी दबाव था कि वे भारत का बायकॉट करें. उस वक्त ओमान के सुल्तान कबूस बिन सईद ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया. उन्होंने साफ कर दिया कि ओमान, भारत के रणनीतिक हितों के खिलाफ नहीं जाएगा. सऊदी अरब और जॉर्डन जैसे देश सुल्तान कबूस से बेहद खफा हो गए थे. लेकिन सुल्तान अड़े रहे. उन्होंने न सिर्फ भारत का कूटनीतिक समर्थन किया, बल्कि अपनी बंदरगाहों और सुविधाओं के दरवाजे भी भारत के लिए खुले रखे. अब जब पीएम मोदी ओमान जा रहे हैं, तो वह एक तरह से उस दोस्ती का कर्ज चुकाने जा रहे हैं. ओमान भारत के लिए सिर्फ एक ‘ट्रेडिंग पार्टनर’ नहीं, बल्कि ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ यानी हर मौसम का साथी है.
‘दिल’ के बाद अब ‘डील’ की बारी
1971 में ओमान ने दिल से साथ दिया था, 2025 में वह भारत की इकॉनमी को रफ्तार देने जा रहा है. पीएम मोदी के इस दौरे पर भारत-ओमान फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर होना लगभग तय है. इस समझौते के बाद भारतीय सामान जैसे कपड़ा, जेम्स, ज्वेलरी, मशीनरी बिना किसी टैक्स के ओमान के बाजारों में बिक सकेगा.
इससे चीन को झटका लगना तय है. ओमान रणनीतिक रूप से बहुत अहम जगह यानी अरब सागर और फारस की खाड़ी के मुहाने पर है. भारत वहां दुकम (Duqm) पोर्ट पर पहले से ही मौजूदगी दर्ज करा चुका है. फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के जरिए भारत वहां चीन के प्रभाव को कम करेगा और अपनी जड़ें जमाएगा.
‘पुणे’ वाला कनेक्शन और सुल्तान से याराना
कूटनीति में निजी रिश्तों का बहुत मोल होता है. ओमान के मौजूदा सुल्तान हैथम बिन तारिक के रगों में भारत से जुड़ी यादें हैं. सुल्तान हैथम के पिता ने भारत के पुणे शहर में पढ़ाई की थी. ओमान का शाही परिवार भारत को अपना दूसरा घर मानता है.
पीएम मोदी और सुल्तान हैथम के बीच गजब का तालमेल है. पिछले साल जब सुल्तान भारत आए थे, तो यह उनकी पहली राजकीय यात्रा थी. अब पीएम मोदी का वहां जाना उस दोस्ती को और गहरा करेगा.
ओमान में करीब 8 लाख भारतीय रहते हैं. पीएम मोदी जब उनसे मिलेंगे, तो यह संदेश जाएगा कि भारत अपने नागरिकों और अपने पुराने दोस्तों, दोनों का ख्याल रखता है.
जॉर्डन और इथियोपिया भी जाएंगे
पीएम मोदी की यह यात्रा सिर्फ ओमान तक सीमित नहीं है. वे जॉर्डन और इथियोपिया भी जा रहे हैं. यह तीनों देश मुस्लिम आबादी के लिहाज से भारत के लिए बहुत मायने रखते हैं.
जॉर्डन (97% मुस्लिम): तब और अब: 1971 में जॉर्डन पाकिस्तान के साथ था, लेकिन आज 2025 में जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला पीएम मोदी के करीबी दोस्त हैं. किंग अब्दुल्ला, जो पैगंबर साहब के वंशज माने जाते हैं, उनका पीएम मोदी का स्वागत करना इस्लामिक दुनिया में भारत की बदलती छवि का सबूत है. यह दौरा फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत के संतुलन को दिखाएगा.
इथियोपिया (34% मुस्लिम): पहला दौरा: यह किसी भारतीय पीएम का पहला इथियोपिया दौरा होगा. वहां 4 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम आबादी है. भारत वहां अफ्रीका में अपनी पैठ बढ़ाने जा रहा है.
1971 की नींव पर 2025 का महल
पीएम मोदी का यह दौरा बताता है कि विदेश नीति में ‘मेमोरी’ कितनी अहम होती है. भारत ने नहीं भुलाया कि जब दुनिया खिलाफ थी, तब ओमान साथ था. ज जब ओमान के साथ ऐतिहासिक FTA होने जा रहा है, तो यह 1971 के उस बीज का फल है जिसे सुल्तान कबूस ने बोया था. ओमान में ‘इकॉनमी’ की बात होगी (FTA के जरिए), लेकिन उसकी बुनियाद में ‘दिल’ की वो बात होगी जो 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े होते वक्त ओमान ने भारत के कान में कही थी- हम तुम्हारे साथ हैं. यह दौरा उसी भरोसे को रीन्यू करने का है.

