Varanasi News: धर्म और आस्था की नगरी काशी में दीपावली का पर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर बाबा विश्वनाथ के मंदिर परिसर को दीपों से सजाया गया, जिससे पूरा धाम दिव्य आभा से जगमगा उठा। मंदिर के गंगा द्वार की सीढ़ियों पर दीप जलाए गए और प्रांगण में ॐ तथा स्वस्तिक के चिह्न बनाकर दीपोत्सव की परंपरा को जीवंत किया गया। दीपों की रौशनी में बाबा का स्वरूप और भी अलौकिक प्रतीत हो रहा था।
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दीपावली की रात की विशेष आराधना

दीपावली की रात बाबा विश्वनाथ की प्रसिद्ध सप्तऋषि आरती अत्यंत भव्यता के साथ संपन्न हुई। यह आरती शाम 7 बजे प्रारंभ हुई और निर्धारित समयानुसार रात 8 बजकर 15 मिनट पर समाप्त हुई। बाबा के अरघे पर दीप जलाकर आरती की शुरुआत की गई, जिसमें श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
बाबा विश्वनाथ मंदिर में प्रतिदिन पांच आरतियाँ होती हैं, जिनमें सप्तऋषि आरती को सबसे विशेष माना जाता है। दीपावली की रात यह आरती और भी दिव्य रूप में संपन्न होती है। इस आरती को सात अलग-अलग गोत्रों के ब्राह्मण करते हैं, जो विभिन्न राज्यों से आते हैं। ये सभी ऋषि डोली लेकर अलग-अलग मार्गों से मंदिर पहुंचते हैं और बाबा की आराधना करते हैं। यह परंपरा काशी विश्वनाथ मंदिर में पिछले 750 वर्षों से चली आ रही है।
सप्तऋषि आरती का महत्व
इस आरती की विशेषता यह है कि इसमें मंदिर ट्रस्ट या नाटकोट चेट्टियार सम्प्रदाय के पुजारी शामिल नहीं होते। इसके स्थान पर विभिन्न राज्यों से आए ब्राह्मण और ऋषि ही इस आरती को संपन्न करते हैं। यह परंपरा मंदिर की प्राचीनता और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है।
दीपावली की रात बाबा को फूलों और चांदी के हार से सजाया गया। उनके मस्तक पर चांदी का चंद्र दमक रहा था, जो दीपों की रौशनी में और भी मनमोहक लग रहा था। गर्भगृह से निकलती दिव्य रौशनी ने भक्तों को भावविभोर कर दिया। हर कोई इस आरती का साक्षी बनने को आतुर था और मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
श्रद्धा और भक्ति का संगम

दीपावली की रात बाबा विश्वनाथ की सप्तऋषि आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रद्धा, परंपरा और भक्ति का अद्भुत संगम है। यह आरती न केवल काशी की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत करती है, बल्कि भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का अनुभव भी कराती है। बाबा के दर्शन और आरती की दिव्यता ने हर भक्त के मन में एक अविस्मरणीय छवि छोड़ दी।
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