Demonetization: 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए एक ऐसा ऐलान किया, जिसने पूरे भारत को चौंका दिया। उन्होंने तत्काल प्रभाव से 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की। इस फैसले के बाद देशभर में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें, और बैंकों व एटीएम के बाहर लंबी कतारें लग गईं।
इस ऐतिहासिक कदम को नोटबंदी कहा गया, जिसका उद्देश्य काले धन पर लगाम कसना, जाली नोटों को खत्म करना और टेरर फंडिंग पर रोक लगाना था। इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली बार 2000 रुपये के नए नोट जारी किए, जो अब 2023 में वापस लिए जा चुके हैं और चलन से बाहर हो चुके हैं।
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99% रकम वापस सिस्टम में लौटी

नोटबंदी के पीछे सरकार का मकसद था कि जो काला धन नकद में छिपाया गया है, वह सामने आए। लेकिन RBI की रिपोर्ट के अनुसार, बंद किए गए कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये में से 15.31 लाख करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए। यानी लगभग 99 प्रतिशत रकम फिर से सिस्टम में लौट आई। इससे यह सवाल उठने लगे कि क्या वास्तव में काले धन पर असर पड़ा।
इसके बावजूद नकली नोटों की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई। आज भी समय-समय पर नकली नोट जब्त किए जाने की खबरें सामने आती रहती हैं। काले धन के खिलाफ लड़ाई अब भी जारी है, लेकिन नोटबंदी को लेकर लोगों की राय अब भी बंटी हुई है।
डिजिटल भुगतान को मिली नई दिशा
नोटबंदी के बाद देश में डिजिटल भुगतान को जबरदस्त बढ़ावा मिला। कैश की कमी के चलते लोगों ने Paytm, PhonePe, Google Pay जैसे डिजिटल माध्यमों को अपनाना शुरू किया। शहरों से लेकर गांवों तक इन ऐप्स की पहुंच बढ़ी और आज UPI के जरिए प्रतिदिन लगभग 14 करोड़ ट्रांजैक्शन हो रहे हैं। यह बदलाव नोटबंदी की एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जाता है।
लोगों के जेहन में आज भी ताजा हैं वो दिन
नोटबंदी के समय की यादें आज भी लोगों के मन में ताजा हैं। उस दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था और छोटे व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। लोग सुबह-सवेरे उठकर बैंक और पेट्रोल पंप के बाहर लाइन में लग जाते थे। कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे घंटों खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करते थे। बैंक कर्मचारी भी दिन-रात काम में जुटे रहे।
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