Onion Price Crash: देश की अर्थव्यवस्था भले ही “विश्वगुरु” बनने की ओर अग्रसर हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत आज भी भारत के किसानों के आंसुओं में बह रही है। महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के एक किसान सुदाम इंगले की कहानी आज पूरे देश के कृषि तंत्र पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। 750 किलो प्याज़ बेचने पर उन्हें केवल 664 रुपये की आय हुई है, जबकि खेती में उनका कुल खर्च था करीब 66000 रुपये।
प्राकृतिक आपदा के बाद अब बाजार की मार
सुदाम ने इस साल डेढ़ एकड़ ज़मीन पर प्याज़ की खेती की। बुवाई से लेकर कटाई तक, उन्होंने खेत की तैयारी, बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई और मज़दूरी पर हज़ारों रुपये खर्च किए। हालाँकि, भारी बारिश से फसल बर्बाद हो गई, फिर भी उन्होंने 750 किलो प्याज़ की पैदावार हासिल कर ली। पुरंधर मंडी में बेचने पर उन्हें 3 रुपये, 2 रुपये और 10 रुपये प्रति किलो के अलग-अलग दाम मिले। कुल बिक्री में से 1,065 रुपये का परिवहन खर्च घटाने के बाद, उनके पास सिर्फ़ 664 रुपये बचे।
“अब तो फसल खेत में ही सड़ने दूंगा”
इस नुकसान के बाद सुदाम ने कहा, “मेरे खेत में अभी और प्याज़ बाकी है, लेकिन मैं अब उसे नहीं निकालूंगा। उसे खेत में ही सड़ने दूंगा।” वे आगे कहते हैं, “मैं किसी तरह इस नुकसान को सह लूंगा, लेकिन जिन छोटे किसानों ने कर्ज लेकर खेती की है, उनके पास आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता।”
पूरे महाराष्ट्र में यही स्थिति
सिर्फ सुदाम ही नहीं, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में हजारों किसान इसी तरह की परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। प्याज़ के साथ-साथ टमाटर, आलू, सोयाबीन और अन्य फसलों के दाम भी बुरी तरह गिर चुके हैं। दीपावली जैसे त्योहार के समय किसानों के घरों में मायूसी और आर्थिक संकट छाया हुआ है।
एशिया के सबसे बड़े प्याज़ बाजार में भी गिरावट
लासलगांव APMC, जो एशिया का सबसे बड़ा प्याज़ बाजार है, वहां पिछले हफ्ते प्याज़ का औसत भाव मात्र 10.50 रुपये प्रति किलो था। विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च-अप्रैल में बंपर उत्पादन के बाद कई किसानों ने प्याज़ को स्टोर कर लिया था। अब वह प्याज़ खराब हो रहा है और मजबूरी में सस्ते दामों पर बेचना पड़ रहा है।
सरकारी नीतियों पर उठते सवाल
किसानों का कहना है कि इस बदहाली के पीछे सरकार की नीतियां ज़िम्मेदार हैं। एक किसान ने कहा, “जब प्याज़ के दाम बढ़ते हैं, सरकार निर्यात पर रोक लगा देती है, लेकिन जब दाम गिरते हैं तो सरकार समर्थन मूल्य पर खरीद क्यों नहीं करती?” 2023 में प्याज़ निर्यात पर बैन लगाया गया था, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी घट गई। किसान आज भी उसी के नुकसान झेल रहे हैं।
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