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लोकसभा चुनाव: जानें कौशाम्बी सीट का इतिहास

Laxmi Mishra
Last updated: अक्टूबर 21, 2023 2:14 अपराह्न
By Laxmi Mishra 2 वर्ष पहले
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लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दे कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।

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जानें कौशाम्बी का इतिहास

जनपद कौशाम्बी ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी है भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। कौशाम्बी जिसका उपनाम कोसम भी जो अब जनपद कौशाम्बी के नाम से जाना जाता है। बताते चले इसके पहले यह जनपद प्रयागराज में सम्मिलित था। इसके दक्षिण में बांदा जनपद, उत्तर में प्रतापगढ़, पूर्व में प्रयागराज एवं पश्चिम दिशा में फतेहपुर जनपद है। कौशाम्बी प्रयागराज के दक्षिण पश्चिम में यमुना नदी के उत्तरी तट पर तहसील मंझनपुर के अन्तर्गत आता है। वर्तमान में इस जनपद का मुख्यालय मंझनपुर है। इसमें 8 विकास खण्ड और 3 तहसीलें है।

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मान्यता है कि प्राचीन काल में राजा कुटुम्ब द्वारा बसाये जाने से भी इसका नाम कौशाम्बी पड़ा। कुटुम्ब चन्द्रवंशी नरेशों पुरूरवा से दसवीं पीढ़ी में हुए थे। इसकी प्रसिद्धि नेमचन्द्र के समय में हुयी थी। हस्तिनापुर के गंगा की बाढ़ में बह जाने से इसी स्थान को नेमचन्द्र ने राजधानी बनाया था। वहीं प्राचीन वत्स देश की राजधानी कौशाम्बी रही है। सम्राट अशोक का प्रसिद्ध तीर्थ स्तम्भ यहीं से उठकर प्रयाग किले में ले जाया गया था। सतपथ ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण, तथा तैतरीय ब्राह्मण इस स्थान को एक बड़ा विद्यापीठ बताया गया है।

मत्स्य और हरिवंश पुराण में भी कौशाम्बी का वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि संस्कृत व्याकरण के प्रसिद्ध आचार्य कात्यायन ऋषि का जन्म यहीं हुआ था। कहते हैं कि पाण्डवों ने अज्ञातवास का 13वाँ वर्ष इस स्थान पर व्यतीत किया। गौतमबुद्ध ने अपने साधु जीवन का छटवाँ और नौवाँ वर्ष यहीं व्यतीत किया। संस्कृत साहित्य में बाणभट्ट की रचनावली नाटिका और कालिदास के मेघदूत और माघ के स्वप्नवासवदत्ता में राजा उदयन की चर्चा है। जिससे बुद्ध की मूर्ति कौशाम्बी में स्थापित है।

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जनपद कौशाम्बी 4 अप्रैल 1997 को प्रयागराज से अलग होकर नया जिला बना। जो मंझनपुर जनपद का मुख्यालय है। कौशाम्बी जनपद में 3 तहसीलें हैं – सिराथू, मंझनपुर और चायल। आपको बता दें कि अशोक स्तंभ भारत का दूसरा यहीं पर स्थापित था और यह स्थान अनेकों साम्राज्य का एक बहुत बड़ा केंद्र था, जैन व बौद्ध भूमि के रूप में प्रसिद्ध कौशाम्बी उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है।

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कौशाम्बी का मुख्य आकर्षण

ऐतिहासिक दृष्टि से कौशांबी काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला माता मंदिर है जो शीतला धाम कड़ा में स्थित है। जो 51 शक्ति पीठों में शामिल है। मंदिर के तट पर स्थित मां गंगा में स्नान के लिए दूर दराज से भक्तों की भीड़ लगती हैं।

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  • शीतला माता मंदिर
  • भैरव नाथ मंदिर
  • ऐतिहासिक राजा जय चंद का किला
  • संत मलूक दास का निवास स्थान
  • ख्वाजा कड़क शाह की मजार
  • दुर्गा देवी मंदिर
  • राम मन्दिर बजहा
  • श्री प्रभाषगिरी तीर्थक्षेत्र
  • संदीपन घाट
  • उदहिन बुजुर्ग राजमहल

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कौशाम्बी का प्राचीनता

पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो राजा परीक्षित के वंशज (युधिष्ठिर से सातवीं पीढ़ी में) थे, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी में बनाई थी। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी के राजा उदयन थे। इस नगरी का उल्लेख महाभारत में नहीं है, फिर भी इसका अस्तित्व ईसा से कई सदियों पूर्व था। गौतम बुद्ध के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य के मध्याह्नाकाल में थी। कालिदास, भास और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से संबंधित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।

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कौशाम्बी का राजनीतिक सफर

यूपी के कौशाम्बी लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के विनोद कुमार सोनकर सांसद हैं, साल 2014 में भाजपा ने यह सीट सपा को हराकर हासिल की थी। आपको बताते चले कि भारतीय मानचित्र में अलग पहचान रखने वाला कौशाम्बी जिले के रूप में 1997 में अस्तित्व में आया। यह प्रयागराज शहर से 55 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस जगह का जिक्र महाभारत काल में मिलता है तो वहीं जैन और बौद्ध ग्रंथों में भी इस जगह का उल्लेख है।

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जिले की औसत साक्षरता दर लगभग में 61.28% है, कौशाम्बी देश के 250 अति पिछड़े जिलों में शामिल है, इस शहर को अति पिछड़ा अनुदान निधि मिलती है, यहां शिक्षा, रोजगार, पेयजल की समस्या काफी अधिक हैं। कौशांबी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया, यह सीट शुरुआत से ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, इसके अंतरगत उतरप्रदेश की पांच विधानसभा सीटें आती हैं, कौशांबी लोकसभा में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें प्रतापगढ़ जिले की कुंडा और बाबागंज विधानसभा सीट शामिल हैं।

जबकि कौशांबी जिले की मंझनपुर, चैल और सिराथू सीट हैं। इनमें से बाबागंज और मंझनपुर की विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2009 में यहां पहली बार आमचुनाव हुए थे जिसे कि समाजवादी पार्टी के नेता शैलेन्द्र कुमार ने जीता था और उन्हें यहां के पहले सांसद बनने का गौरव हासिल हुआ था लेकिन साल 2014 में ये सीट भाजपा ने अपने नाम की और विनोद कुमार सोनकर यहां से एमपी चुने गए।

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देखें सीट

2008 तक: निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में नहीं था
2009 – शैलेन्द्र कुमार – समाजवादी पार्टी
2014 – विनोद कुमार सोनकर – भारतीय जनता पार्टी
2019 – विनोद कुमार सोनकर – भारतीय जनता पार्टी

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जातिगत समीकरण

जातिगत आंकड़े की अगर बात करें तो इस जनपद में सामान्य जाति लगभग में 50%, पिछड़ी जाति लगभग में 30.7%, और अनु/जन जाति लगभग 20% आबादी है। कौशांबी देश के 250 अति पिछड़े जिलों में शामिल है। यहां की 85 % आबादी हिंदुओं की और 13 % संख्या मुस्लिमों की है। हिंदुओं में भी करीब 70 % अनुसूचित जाति के लोग हैं। कौशांबी लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें प्रतापगढ़ जिले की कुंडा और बाबागंज विधानसभा सीट जबकि कौशांबी जिले की मंझनपुर, चायल और सिराथू सीट शामिल हैं। भगवान गौतम बुद्ध की नगरी कौशांबी उत्तर प्रदेश की टॉप-5 अनुसूचित बाहुल्य लोकसभा सीट में शामिल है। चुनाव में अनुसूचित वर्ग के मतदाताओं की अहम भूमिका है।

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ब्राह्मण 265102
क्षत्रिय 180269
वैश्य 49486
कायस्थ 17673
मुस्लिम 42416
कुर्मी 173200
यादव 197942
मल्लाह 21208
पासी 212081
दलित 169665

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चायल लोकसभा सीट के नाम से बना कौशांबी

यूपी का कौशांबी लोकसभा सीट सुरक्षित सीटों में से एक है बता दें कि यह सीट भौगोलिक परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आई। सीट का गठन प्रतापगढ़ जिले की दो विधानसभाओं और कौशांबी जिले को मिलाकर किया गया। इस संसदीय सीट पर रघुराज प्रताप सिंह का काफी राजनीतिक दखल है।

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कौशांबी नाम से जाने जानी वाली सीट पहले चायल लोकसभा सीट से इसकी जानी जाती थी, जहां पर 1952 में लोकसभा चुनाव हुए और कांग्रेस प्रत्याशी मसुरिया दीन सांसद बने। आपको बतादें कि मसुरिया दीन यहां से 4 बार सांसद रहे। सपा प्रत्याशी शैलेंद्र कुमार चायल सीट से 3 बार सांसद बने। बताते चले चायल सीट 2 बार बीजेपी के खाते में गई पहली बार डॉ. अमृतलाल भारतीय और दूसरी बार विनोद सोनकर यहां से सांसद हुए।

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क्षेत्र का चार बार हुआ परिसीमन

आजादी के बाद से इस क्षेत्र का चार बार परिसीमन हो चुका है। वर्ष 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र के लोग इलाहाबाद ईष्ट कम जौनपुर वेस्ट संसदीय सीट के लिए वोट करते थे। पांच साल बाद हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में यह क्षेत्र फूलपुर संसदीय सीट में शामिल हो गया। फिर 1962 में ही लोकसभा सीट चायल (सुरक्षित) वजूद में आ गई। उस वक्त का इलाहाबाद जोकि अब का प्रयागराज है जिसका शहर पश्चिमी व फतेहपुर जनपद की खागा विधानसभा के साथ ही जिले की मंझनपुर, चायल और सिराथू समेत पांच विधानसभाएं शामिल थी। 47 साल बाद एक बार फिर परिसीमन में सीट बदल गई।

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2009 के 15वें लोकसभा चुनाव में चायल (सुरक्षित) में शामिल रही इलाहाबाद और फतेहपुर जनपद की दोनों विधानसभाओं को काटकर प्रतापगढ़ के कुंडा और बाबागंज को जोड़ दी गई। इसका नाम कौशाम्बी (सुरक्षित) संसदीय कर दिया गया। इस सीट पर हुए पहले चुनाव में सपा के शैलेंद्र कुमार सांसद निर्वाचित हुए। जबकि 2014 में भाजपा के विनोद सोनकर विजयी हुए। बड़े नेताओं की जनसभाएं कौशाम्बी में लगती हैं। जबकि दो विधानसभा क्षेत्र के मतदाता दूसरे जिले में होते हैं। कुंडा और बाबागंज विधानसभा की दूरी अधिक होने के कारण प्रत्याशियों को प्रचार में काफी दिक्कत होती है।

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