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लोकसभा चुनाव: जानें लोकसभा चुनाव को लेकर गोरखपुर का सियासी और राजसी इतिहास

Laxmi Mishra
Last updated: सितम्बर 26, 2023 5:16 अपराह्न
By Laxmi Mishra 2 वर्ष पहले
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लोकसभा चुनाव 2024: आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी की नजरें बनी हुई हैं कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता मगर चुनाव को लेकर जोरशोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अभी से सभी दलों ने तैयारी शुरू कर दी हैं और अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं और कहा जाता हैं केंन्द्र की सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता हैं। ऐसे में आज हम गोरखपुर की सीट को लेकर चर्चा करेंगे और जानेंगे गोरखपुर का इतिहास…

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गोरखपुर का इतिहास

वैदिक लेखन के मुताबिक, अयोध्या के सत्तारूढ़ ज्ञात सम्राट इक्ष्वाकु, जो सूर्यवंश के संस्थापक थे जिनके वंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं में रामायण के राम को सभी अच्छी तरह से जानते हैं। पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता के प्रमुख केन्द्र कोशल और मल्ल, जो सोलह महाजनपदों में दो प्रसिद्ध राज्य ईसा पूर्व छ्ठी शताब्दी में विद्यमान थे, यह उन्ही राज्यों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था। गोरखपुर कौशल के प्रसिद्ध राज्य का एक हिस्सा था, जो छठवीं सदी में सोलह महाजनपदों में से एक था।

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अयोध्या में अपनी राजधानी के साथ इस क्षेत्र में सबसे पहले राजा शासक थे, जिन्होंने क्षत्रिय के सौर वंश की स्थापना की थी। तब से, यह मौर्य, शुंग, कुशना, गुप्ता और हर्ष राजवंशों के पूर्व साम्राज्यों का एक अभिन्न अंग बना रहा। परंपरा के अनुसार, थारू राजा, मदन सिंह के मोगेन (900-950 ए.डी.) ने गोरखपुर शहर और आस-पास क्षेत्र पर शासन किये। 10 वीं सदी में थारू जाति के राजा मदन सिंह ने गोरखपुर शहर और आसपास के क्षेत्र पर शासन किया। राजा विकास संकृत्यायन का जन्म स्थान भी यहीं रहा है।

मुस्लिम शासकों के शासन के अधीन

12वीं सदी में, गोरखपुर क्षेत्र पर उत्तरी भारत मुस्लिम शासक मुहम्मद गोरी के समक्ष पराजित हो गया तो गोरखपुर क्षेत्र को बाहर नहीं छोड़ा गया था। लंबी अवधि के लिए यह कुतुब-उद-दीन ऐबक से बहादुर शाह तक मुस्लिम शासकों के शासन के अधीन रहा। शुरुआती 16वीं सदी के प्रारम्भ में भारत के एक रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध सन्त कबीर भी यहीं रहते थे और मगहर नाम का एक गाँव (वर्तमान संतकबीरनगर जिले में स्थित), जहाँ उनके दफन करने की जगह अभी भी कई तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, गोरखपुर से लगभग 20 किमी दूर स्थित है।

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1801 में अवध के नवाब ने ईस्ट इंडिया कंपनी को इस क्षेत्र के हस्तांतरण से आधुनिक काल को चिह्नित किया था। इस के साथ, गोरखपुर को एक ‘जिलाधिकारी’ दिया गया था। पहला कलेक्टर रूटलेज था। 1829 में, गोरखपुर को इसी नाम के एक डिवीजन का मुख्यालय बनाया गया था, जिसमें गोरखपुर, गाजीपुर और आज़मगढ़ के जिले शामिल थे। सन् 1865 में नया जिला बस्ती गोरखपुर से बनाया गया था। 1946 में नया जिला देवरिया बना दिया गया था। गोरखपुर के तीसरे विभाजन ने 1989 में जिला महाराजगंज के निर्माण का नेतृत्व किया।

गोरखपुर का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

गोरखपुर का अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है, यह जनपद महान भगवान बुद्ध, जो बौद्ध धर्म के संस्थापक है, जिन्होंने 600 ई.पू. रोहिन नदी के तट पर अपने राजसी वेशभूषाओं को त्याग दिया और सच्चाई की खोज में निकल पड़े थे उनसे जुड़ा है। यह जनपद भगवान महावीर, 24 वीं तीर्थंकर, जैन धर्म के संस्थापक के साथ भी जुड़ा हुआ है। गोरखनाथ के साथ गोरखपुर के सहयोग का अगला आयोजन महत्त्वपूर्ण था। उनके जन्म की तारीख और जगह अभी तक समाप्त नहीं हुई है, लेकिन शायद यह बारहवीं शताब्दी में था जो कि वह विकसित हुआ। गोरखपुर में उनकी समाधि हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है।

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मध्ययुगीन काल में सबसे महत्वपूर्ण घटना, हालांकि, रहस्यवादी कवि और प्रसिद्ध संत कबीर मगहर से आने वाला था। वाराणसी में पैदा हुए, उनका कार्यस्थल मगहर था जहां उनकी सबसे खूबसूरत कविताओं का निर्माण किया गया था। यह यहां था कि उन्होंने अपने देशवासियों को शांति और धार्मिक सद्भाव में रहने के लिए संदेश दिया। ‘समाधि’ और ‘मकबरा’ के सह-अस्तित्व में मगहर में अपनी कब्र जगह पर बड़ी संख्या में अनुयायियों को आकर्षित किया जाता है।

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धार्मिक पुस्तकों की पहचान

गोरखपुर को हिंदू धार्मिक पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीता प्रेस के साथ भी पहचान लिया गया है। सबसे प्रसिद्ध प्रकाशन ‘कल्याण’ पत्रिका है श्री भागवत गीता के सभी 18 हिस्सों को अपनी संगमरमर की दीवारों पर लिखा गया है। अन्य दीवार के पर्दे और पेंटिंग भगवान राम और कृष्ण के जीवन की घटनाओं को प्रकट करते हैं। पूरे देश में धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना के प्रसार के लिए गीता प्रेस अग्रिम है।

गोरखपुर की ऐतिहासिक यादें

गोरखपुर में 4 फरवरी, 1922 की ऐतिहासिक (चौरी चौरा) की घटना घटना के कारण गोरखपुर महान प्रतिष्ठा पर पहुंच गया, जो भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मोड़-दरमिया था। पुलिस के अमानवीय बर्बर अत्याचारों पर गुस्से में, स्वयंसेवकों ने चौरी-चौरा पुलिस थाने को जला दिया, परिसर में लगभग में 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इस हिंसा के साथ, महात्मा गांधी ने 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।

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आम जनता की इस हिंसा से घबराकर महात्मा गांधी ने अपना असहयोग आंदोलन यकायक स्थगित कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में ही हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम का एक देशव्यापी प्रमुख क्रान्तिकारी दल गठित हुआ जिसने 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके ब्रिटिश सरकार को खुली चुनौती दी जिसके परिणामस्वरूप दल के प्रमुख क्रन्तिकारी नेता राम प्रसाद बिस्मिल’ को गोरखपुर जेल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय भाग लेने के लिये फाँसी दे दी गयी। 19 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल की अन्त्येष्टि जहाँ पर की गयी वह राजघाट नाम का स्थान गोरखपुर में ही राप्ती नदी के तट पर स्थित है। सन् 1934 में यहाँ एक भूकम्प आया था जिसकी तीव्रता 8.1 रिक्टर पैमाने पर मापी गयी, उससे शहर में बहुत ज्यादा नुकसान हुआ था।

एक और महत्वपूर्ण घटना 23 सितंबर, 1942 को दोहरिया में (सहजनवा तहसील में) हुई। 1942 के प्रसिद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के जवाब में, दोहरिया में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करने के लिए एक बैठक आयोजित की गई, लेकिन बाद में असफल गोलियों से जवाब दिया, नौ मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हुए। एक शहीद स्मारक, उनकी याद में, वहां आज भी अपनी याददाश्त को जीवित रखता है। पं. जवाहर लाल नेहरू का परीक्षण 1940 में इस जिले में हुए थे। यहां उन्हें 4 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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आपको बतादें कि गोरखपुर वायु सेना का मुख्यालय भी है जो कोबरा स्क्वाड्रन के नाम से जाना जाता है। 1865 में, गोरखपुर जिले से नया जिला बस्ती विभाजित किया गया था। वर्ष 1946 में दोबारा गोरखपुर को विभाजित कर नया जिला देवरिया बनाया गया था। 1989 में गोरखपुर के तीसरे विभाजन से जिला महाराजगंज का निर्माण किया गया।

गोरखपुर का महत्व

गोरखपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में, नेपाल की सीमा के पास, गोरखपुर ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध नगर है। गोरखपुर शहर और जिले के का नाम प्रसिद्ध तपस्वी सन्त मत्स्येन्द्रनाथ के प्रमुख शिष्य गोरखनाथ के नाम पर पड़ा है। योगी मत्स्येन्द्रनाथ एवं उनके प्रमुख शिष्य गोरक्षनाथ ने मिलकर सन्तों के सम्प्रदाय की स्थापना की थी। गोरखनाथ मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ गोरखनाथ हठ योग का अभ्यास करने के लिये आत्म नियन्त्रण के विकास पर विशेष बल दिया करते थे और वर्षानुवर्ष एक ही मुद्रा में धूनी रमाये तपस्या किया करते थे। गोरखनाथ मन्दिर में आज भी वह धूनी की आग अनन्त काल से अनवरत सुलगती हुई चली आ रही है।

यह जिले का प्रशासनिक मुख्यालय और पूर्वोत्तर रेलवे (एन०ई०आर०) का मुख्यालय भी है। गोरखपुर ज़िले की सीमाएँ पूर्व में देवरिया एवं कुशीनगर से, पश्चिम में संत कबीर नगर से, उत्तर में महराजगंज एवं सिद्धार्थनगर से, तथा दक्षिण में मऊ, आज़मगढ़ तथा अम्बेडकर नगर से लगती हैं।

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गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड में बना रिकॉर्ड्स

गोरखपुर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र है, जो अतीत से बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा है। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद, उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है।

इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीताप्रेस। गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन गोरखपुर शहर का रेलवे स्टेशन है। गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार विश्व का सर्वाधिक लम्बा प्लेटफॉर्म यहीं पर स्थित है जो सन् 1930 में शुरू हुआ।

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20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में ‘बंगाल नागपुर रेलवे’ के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर भी है, जो इस जिले का प्रमुख मंदिर है।

गोरखपुर की कुछ रोचक बातें

1- गोरखपुर जिला की स्थापना सन 1801 में हुआ था।
2- उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे लोकप्रिय जिला गोरखपुर है इस जिले में पर्यटन स्थल, चिड़िया घर, रेलवे म्यूजियम, नौका विहार, गोरखनाथ मंदिर, बुढ़िया माई मंदिर इत्यादि मौजूद है।
3- गोरखपुर का इतिहास लगभग 2600 साल पुराना है क्योकि प्राचीन गोरखपुर का नाम आठ बार बदलने के बाद नया नाम जिला गोरखपुर पड़ा।


4- इस जिले का आठ पुराने नाम में से एक नाम कभी गुरुग्राम एंव दूसरा नाम गोरक्षपुर भी रहा है।
5- इस जिले का नाम, कालांतर में दुनिया को योग से परिचित कराने वाले गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर, नया नाम गोरखपुर रखा गया।
6- गोरखपुर शहर का प्राचीन अन्य नाम गोरक्षपुर, अख्तर नगर, मोअज्जमाबाद, सूब-ए-सर्किया, रामग्राम, गोरखपुर सरकार, पिप्पलीवन हुआ करता था
7- आज के समय में रामगढ़ झील जहां मौजूद है वहा पर कभी रामग्राम बसा हुआ था।

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गोरखपुर लोकसभा के सदस्य

  • 1952 सिंहासन सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1957 महादेव प्रसाद – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1962 सिंहासन सिंह – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1967 महंत दिग्विजयनाथ – स्वतंत्र
  • 1970^ महंत अवेद्यनाथ – स्वतंत्र
  • 1971 नरसिंह नारायण पांडे – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1977 हरिकेश बहादुर – जनता पार्टी
  • 1980 हरिकेश बहादुर – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1984 मदन पांडे – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • 1989 महंत अवेद्यनाथ – हिंदू महासभा
  • 1991 महंत अवेद्यनाथ – हिंदू महासभा
  • 1996 महंत अवेद्यनाथ – हिंदू महासभा
  • 1998 योगी आदित्यनाथ -भारतीय जनता पार्टी
  • 1999 योगी आदित्यनाथ -भारतीय जनता पार्टी
  • 2004 योगी आदित्यनाथ -भारतीय जनता पार्टी
  • 2009 योगी आदित्यनाथ -भारतीय जनता पार्टी
  • 2014 योगी आदित्यनाथ -भारतीय जनता पार्टी
  • 2018^ प्रवीण निषाद – समाजवादी पार्टी
  • 2019 रवि किशन -भारतीय जनता पार्टी

गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण

एक वक्त था जब गोरखपुर और उसके आसपास की सियासत ब्राह्मणों ओर ठाकुरों की जातिगत गोलबंदी के आधार पर चलती थी। लेकिन ओबीसी और दलित जातियों के उभार के बाद ये सियासी समीकरण बहुत कुछ बदल गए। इस क्षेत्र में पिछड़े और दलित मतदाताओं की बहुलता बताई जाती है। वहीं अनुमान की माने तो यहां करीब चार लाख निषाद जाति के वोट हैं।

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निषाद मतदाता सबसे ज्यादा पिपराइच और गोरखपुर ग्रामीण क्षेत्र में हैं। करीब दो-दो लाख यादव और दलित मतदाता हैं। इसके अलावा डेढ़ लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। अनुमान है कि क्षेत्र में करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण मतदाता, सवा लाख क्षत्रिय मतदाता हैं। भूमिहार और वैश्य मतदाताओं की तादाद भी करीब एक लाख है।

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