Pakistan Army: पाकिस्तान में हाल ही में किए गए संवैधानिक संशोधनों ने देश में सत्ता के संतुलन को पूरी तरह बदल दिया है। नए संशोधनों के बाद सेना, खासकर आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर की भूमिका अत्यधिक प्रभावशाली बन गई है। इसके विपरीत, न्यायपालिका की शक्तियों में स्पष्ट कटौती देखने को मिल रही है। इस बदलाव ने देश के भीतर कई संस्थाओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र को भी चिंतित कर दिया है।
Pakistan Army: संयुक्त राष्ट्र की चिंता
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के प्रमुख वोल्कर टर्क ने शुक्रवार को एक बयान जारी किया। उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान में तेजी से लागू किए गए ये संवैधानिक संशोधन न्यायपालिका की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। उनके अनुसार, इससे सेना का दखल बढ़ने और नागरिक सरकार की भूमिका कमजोर होने की संभावना मजबूत हो जाती है, जो कानून के शासन पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
Pakistan Army: लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन
टर्क ने कहा कि यह संशोधन बिना किसी सार्वजनिक चर्चा, कानूनी समुदाय की सलाह या व्यापक बहस के लागू किया गया। उनका मानना है कि यह कदम पाकिस्तान की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के विपरीत है। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि यह बदलाव उन संस्थाओं के खिलाफ जाता है जो मानवाधिकार और कानून के शासन की रक्षा करती हैं। न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव को लेकर गहरी चिंता जताई गई है।
जजों की नियुक्ति और तबादले प्रभावित
बयान में यह भी कहा गया कि जजों की नियुक्ति और तबादले से जुड़े नए प्रावधान न्यायपालिका की संरचनात्मक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकते हैं। इससे राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने और कार्यपालिका के प्रभाव में न्यायपालिका आने का खतरा बढ़ जाता है। वोल्कर टर्क ने जोर देकर कहा कि अदालतों को अपने फैसलों में किसी भी राजनीतिक दबाव से पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए।
27वें संशोधन पर आपत्ति
संयुक्त राष्ट्र अधिकारी ने 27वें संशोधन पर विशेष चिंता जताई। इस संशोधन के तहत राष्ट्रपति और फील्ड मार्शल को आजीवन आपराधिक मुकदमों और गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की गई है। टर्क ने कहा कि यह कदम मानवाधिकार सिद्धांतों और लोकतांत्रिक नियंत्रण के ढांचे के खिलाफ है। उनका मानना है कि इस संशोधन का पाकिस्तान के लोकतांत्रिक भविष्य पर दूरगामी असर पड़ सकता है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने किया हस्ताक्षर
गौरतलब है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने 13 नवंबर को 27वें संवैधानिक संशोधन पर हस्ताक्षर कर इसे कानून का रूप दे दिया। इस संशोधन के लागू होने के बाद आर्मी चीफ आसिम मुनीर की शक्ति अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है। रिपोर्टों के अनुसार, उनके पास अब प्रधानमंत्री से भी अधिक अधिकार हैं और वह देश के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बनकर उभरे हैं।
राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
विश्लेषकों का कहना है कि इस संवैधानिक बदलाव के बाद पाकिस्तान में सेना का प्रभाव मजबूत हो गया है, जबकि न्यायपालिका और नागरिक सरकार की भूमिका सीमित हो गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर प्रतिकूल कदम के रूप में देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थाएं पाकिस्तान की राजनीतिक दिशा पर नज़र बनाए हुए हैं।
Read More : Asim Munir : तीनों सेनाओं पर मुनीर का कंट्रोल, क्या पाकिस्तान में अब लोकतंत्र खत्म हो गया है?

