Imtiaz Mir: कराची में एक पत्रकार एवं टीवी एंकर की गोलियों से हत्या कर दी गई, जिसके पीछे उनके इज़राइल के समर्थन में किए गए बयान को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। यह घटना 21 सितंबर को कराची के मालिर इलाके में हुई, जब पत्रकार इम्तियाज मीर चैनल कार्यालय से बाहर निकल रहे थे।
हत्यारे और गिरफ्तारी
सिंध प्रांत के गृह मंत्री जियाउल हसन लंजहर ने बताया कि पत्रकार मीर को चरमपंथी इस्लामी समूह के कार्यकर्ताओं ने निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि मीर को इज़राइल का समर्थक मानने और उनके कथित बयानों के कारण हत्या की गई।
सिंध पुलिस के महानिरीक्षक (आईजीपी) गुलाम नबी मेमन और कराची के पुलिस प्रमुख जावेद आलम ओधो ने मीडिया को बताया कि चार संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने स्वीकार किया कि गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने पाकिस्तान के बाहर अपने आका के आदेश पर हत्या की बात कबूल की है।
गिरफ्तार किए गए संदिग्धों की पहचान अजलाल जैदी, शहाब असगर, अहसान अब्बास और फराज अहमद के रूप में हुई है। यह आरोपित समूह कथित तौर पर ‘लश्कर सरुल्लाह’ से जुड़ा है, जो प्रतिबंधित जैनबियून ब्रिगेड का हिस्सा है।
हत्या का राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ
गृह मंत्री लंजहर ने कहा कि हत्यारे पत्रकार को इज़राइल का कथित समर्थक मानते थे। मीर के अनुसार, यह हमला केवल उनके राजनीतिक विचारों और चैनल पर की गई टिप्पणी के कारण हुआ। गिरफ्तार संदिग्ध शिक्षित व्यक्ति बताए जा रहे हैं और उनका सरगना एक पड़ोसी देश में रहता है, हालांकि गृह मंत्री ने किसी देश का नाम नहीं लिया।इस घटना ने पाकिस्तान में पत्रकार सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चिंता बढ़ा दी है। मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने तुरंत सख्त कार्रवाई और जांच की मांग की है।
सिंध पुलिस की कार्रवाई
आईजीपी गुलाम नबी मेमन ने कहा कि पुलिस ने हत्या के मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस का कहना है कि मामले की अंतरराष्ट्रीय कड़ी भी सामने आ सकती है, क्योंकि हत्यारे के आदेश किसी विदेशी स्रोत से आने का दावा किया गया है।
कराची में पत्रकार मीर की हत्या ने पाकिस्तान में मीडिया कर्मियों के लिए बढ़ते खतरे को एक बार फिर उजागर किया है। सुरक्षा एजेंसियों को बताया गया है कि प्रतिबंधित समूह जैनबियून ब्रिगेड और लश्कर सरुल्लाह सक्रिय हैं और वे मीडिया और नागरिकों के खिलाफ हिंसक घटनाओं में शामिल हो सकते हैं।यह मामला न केवल पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया पर दबाव के मुद्दे को भी सामने लाता है।

