Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष, जिसे सोरह श्राद्ध या महालय पक्ष भी कहा जाता है, हिंदू संस्कृति में पूर्वजों को समर्पित एक विशेष समय है। यह समय न केवल पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से सम्मान देने का है, बल्कि उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भी है। यह पक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलता है।
क्यों बना दिया गया पितृ पक्ष को ‘अशुभ’?

पारंपरिक मान्यताओं और कर्मकांडों के कारण इस पक्ष को अशुभ मानने की भ्रांति बन गई है। विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण जैसे शुभ कार्यों पर रोक और बाजारों की सुस्ती इसे और नकारात्मक बना देती है। परंतु शास्त्रों में कहीं नहीं लिखा है कि यह पक्ष अमंगलकारी है। बल्कि यह समय एकाग्रता और समर्पण का है, जिससे पितरों की आत्मा को शांति और वंश को आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कौआ, कुत्ता, गाय और ब्राह्मण
पितृ पक्ष के चार प्रतीक हैं— कौवा, कुत्ता, गाय और ब्राह्मण – धीरे-धीरे आधुनिक जीवन में अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। कौवा अब दिखता नहीं, कुत्ते बंध्याकरण के भय से छुपे हैं, गायें आवारा हैं और ब्राह्मणों की भूमिका सीमित हो गई है। इन सबके बिना पितृ कर्म अधूरे लगते हैं, जिससे लोग इसे निरर्थक समझने लगे हैं।
श्राद्ध कर्म
यह विरोधाभास भी उभरता है कि अगर पुनर्जन्म सत्य है, तो पितर कैसे आ सकते हैं? और अगर पितर आते हैं, तो पुनर्जन्म कैसे संभव है? ऐसे में पितृ पक्ष को समझना जरूरी है यह प्रतीकात्मक श्रद्धा है, जो हमारे मन से पितरों के प्रति प्रेम, सम्मान और जिम्मेदारी को दर्शाता है।
पितृ ऋण और पुराणों का उल्लेख
महाभारत, विष्णु पुराण, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व बताया गया है। यह न केवल आत्मा की शांति के लिए जरूरी है, बल्कि वंश की समृद्धि और कल्याण के लिए भी।
समय का प्रभाव
इस काल में चंद्रमा धरती के करीब होता है, जिससे मन पर प्रभाव पड़ता है। निर्णय क्षमता पर असर होता है, नए कार्यों से दूरी रखने की सलाह दी गई है। साथ ही, यह काल देवताओं के शयन का भी होता है, इसलिए शुभ कार्य नहीं होते।
बीते समय का पुनर्पाठ
पितृपक्ष केवल कर्मकांड नहीं, यह अवसर है ठहरने, सोचने, अपने पूर्वजों की स्मृति में डूबने और उनके अनुभवों से सीखने का। यह काल नकारात्मक नहीं, बल्कि आत्ममंथन और संतुलन का पर्व है।

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