Pitru Paksha 2025: पिंडदान करने का समय यानी की पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो चुकी है, जो कि 21 सितंबर को समाप्त होगी। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने के साथ-साथ ब्राह्मणों को भोजन और श्राद्ध से जुड़ी अन्य प्रक्रियाएं करते हैं।
ऐसे में श्राद्ध के समय पंडित दाएं हाथ में कुशा की अंगूठी पहनाते हैं। इस अंगूठी को बहुत ही पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि इसे पहन कर श्राद्ध की विधि पूरी करने से पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़ी और बातें…
श्राद्ध के दौरान कुशा की अंगूठी पहनने का कारण…

श्राद्ध के दौरान अनामिका उंगली में कुशा की अंगूठी पहनाई जाती है और उसी उंगली से पितरों को जल अर्पित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कुशा के साथ जल चढ़ाने से पितृ खुश होकर अपने परिवार वालों को आशीर्वाद देते हैं और पितृ की आत्मा को शांति भी मिलती है। कुशा के साथ जल अर्पित करने का सही अर्थ ये होता है कि आपने पवित्र होकर पिंडदान किया है।
Read more: NTPC Green Energy शेयर में हलचल! एक्सपर्ट्स का टारगेट 120 रुपये, निवेश के लिए मौक़ा या धोखा?
कब हुई थी कुशा की उत्पत्ति…

कुशा की उतपत्ति कोई आम घास नहीं होती है। एक जानी-मानी कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष को मारने के लिए उन्हें पानी में उतारा था तो उसी वक्त खुद को सुखाते वक्त उनके कुछ बाल जमीन पर गिर गए। जिसने बाद में उन्हीं बालों ने कुशा का रूप ले लिया था।
Read more: Sone Ka Bhav: त्यौहार नजदीक, दाम में बढ़ोतरी का सिलसिला तेज, जानें लेटेस्ट रेट…
जानें क्यों मानते हैं कुशा को पवित्र?
ऐसा माना जाता है कि, कुशा के हर भाग में ईश्वर की छवि होती है। इसके आगे के भाव में ब्रह्मा, बीच में विष्णु और मूल भाग में भोलनाथ का निवास होता है। महाभारत में लिखी एक कड़ी के अनुसार जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया था, जिससो की कुशा का और अधिक महत्व हो गया।

