Jharkhand: कहते हैं राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता न कोई स्थायी दोस्त होता और न कोई स्थायी दुश्मन मौसम में परिवर्तन की तरह राजनीति में परिवर्तन का दौर हमेशा चलता रहता है इसका एक उदाहरण फिर से झारखंड में देखने को मिलने वाला है।झारखंड (Jharkhand) के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं अटकलें इसकी भी लगाई जा रही हैं कि,झारखंड मुक्ति मोर्चा और हेमंत सोरेन से उनके रिश्ते कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं तेज हैं।झारखंड में विधानसभा चुनाव से पहले चंपई सोरेन भाजपा में शामिल हो सकते हैं रविवार को उनके दिल्ली पहुंचने से इस बात को लेकर चर्चा और तेज हो गई है।
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चंपई सोरेन का JMM से मोह भंग

दरअसल,चंपई सोरेन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का नाम हटा दिया है हालांकि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री लिखा हुआ है चंपई सोरेन ने पार्टी से दूर होने की वजह भी बताई है चंपई सोरेन ने एक्स पर लिख है….जोहार साथियों,आज समाचार देखने के बाद आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है।
राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं। किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे। इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड (Jharkhand) के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया।
सोशल मीडिया से हटाया पार्टी का सिंबल

चंपई सोरेन ने आगे लिखा,झारखंड (Jharkhand) का बच्चा- बच्चा जनता है कि,अपने कार्यकाल के दौरान मैंने कभी भी किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया।इसी बीच हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है।इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था।पूछने पर पता चला कि,गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते। क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि,नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया।
पार्टी के भीतर अपमानित होने का लगाया आरोप

पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने पार्टी में रहते हुए खुद को अपमानित करने की बात कहते हुए एक्स पर लिखा,पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में मैं पहली बार मैं भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं।2 दिन तक चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता? जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था?