Bangladesh Election: बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल गरमाता जा रहा है। चुनाव प्रचार के बीच हिंसा की घटनाओं ने देश की सियासत में हलचल मचा दी है। मंगलवार, 6 नवंबर को चटगांव और कोमिला समेत कई जिलों में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के उम्मीदवारों पर हमले हुए। एक ओर बीएनपी के प्रत्याशी को गोली मारी गई, वहीं दूसरे उम्मीदवार के घर को आग के हवाले कर दिया गया।
चटगांव में बीएनपी प्रत्याशी पर गोलीबारी
चटगांव में बीएनपी उम्मीदवार इरशाद उल्लाह अपने प्रचार अभियान के दौरान समर्थकों को संबोधित कर रहे थे, तभी अज्ञात हमलावरों ने फायरिंग शुरू कर दी। गोली लगने से वे घायल हो गए और उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। घटना के बाद इलाके में अफरा-तफरी मच गई।अंतरिम सरकार ने इस हमले की निंदा करते हुए कहा कि प्रारंभिक जांच से यह संकेत मिला है कि इरशाद उल्लाह हमले का मुख्य निशाना नहीं थे, बल्कि आवारा गोली लगने से घायल हुए। सरकार ने कहा कि मामले की गहन जांच के आदेश दिए गए हैं और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
मध्य कोमिला में उम्मीदवार के घर में आगजनी
इधर, मध्य कोमिला जिले में बीएनपी के नामांकन आकांक्षी सांसद उम्मीदवार मोनोवर सरकार के घर को अज्ञात बदमाशों ने आग के हवाले कर दिया। मोनोवर सरकार ने आरोप लगाया कि यह घटना चुनावी माहौल को अस्थिर करने की साजिश का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि उनके परिवार को धमकियां मिल रही थीं और अब यह हमला उनके खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध का संकेत है।
BNP ने जमात-ए-इस्लामी पर साधा निशाना
बीएनपी ने हिंसा की इन घटनाओं के पीछे जमात-ए-इस्लामी का हाथ बताया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि हाल ही में छात्र संघ चुनावों में जमात समर्थित छात्र संगठनों की जीत के बाद से ही देश में राजनीतिक तनाव बढ़ गया है।बीएनपी के उत्तरी नेत्रकोना जिले से सांसद उम्मीदवार अनवारुल हक ने आरोप लगाया कि जमात-ए-इस्लामी और सरकार के कुछ सलाहकार, साथ ही कुछ विदेशी हितधारक, आगामी चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “जमात यह संदेश देना चाहती है कि वे अगली सरकार बनाएंगे, लेकिन बांग्लादेश के लोग मध्यम विचारधारा वाले हैं और वे चरमपंथ का समर्थन नहीं करते।”
चुनावी माहौल में बढ़ती हिंसा से चिंता
चुनाव से पहले बढ़ती हिंसा ने बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार निष्पक्ष चुनाव कराने में नाकाम रही है, जबकि सरकार का कहना है कि वह शांतिपूर्ण और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर हिंसा पर शीघ्र नियंत्रण नहीं पाया गया, तो इससे चुनाव की विश्वसनीयता और जनभागीदारी दोनों प्रभावित हो सकती हैं।
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