President Murmu In Gaya: देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को आस्था और परंपरा का अनुपम उदाहरण पेश करते हुए बिहार के गया में विष्णुपद मंदिर पहुंचकर पिंडदान किया। यह पहला अवसर है जब किसी मौजूदा राष्ट्रपति ने गया में पिंडदान की धार्मिक परंपरा निभाई हो।
राष्ट्रपति ने गयाजी में करीब दो घंटे बिताए
सुबह राष्ट्रपति मुर्मू का काफिला विष्णुपद मंदिर परिसर पहुंचा, जहां करीब दो घंटे तक वे रहीं। उन्होंने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विधिवत पिंडदान किया। पिंडदान की यह प्रक्रिया मंदिर परिसर में बने एल्युमिनियम फैब्रिकेटेड हॉल में की गई, जहां राष्ट्रपति के लिए तीन विशेष कक्ष बनाए गए थे। एक कक्ष में राष्ट्रपति ने अपने परिवार के साथ धार्मिक क्रिया की, जबकि अन्य दो कक्षों में राष्ट्रपति भवन के अधिकारी मौजूद थे।
राज्यपाल ने दिया साथ
इस विशेष धार्मिक यात्रा में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी राष्ट्रपति के साथ मौजूद थे। वे राष्ट्रपति को मंदिर तक छोड़ने आए और बाद में लौट गए। यह दृश्य धर्मनिरपेक्ष भारत की सुंदर तस्वीर प्रस्तुत करता है, जहां संवैधानिक पदों पर बैठे नेता परंपरा और संस्कृति के प्रति समर्पण दिखाते हैं।
पंडा समाज ने निभाई धार्मिक परंपरा
राष्ट्रपति के पिंडदान की पूरी प्रक्रिया पंडा राजेश लाल कटरियार के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुई। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति मुर्मू का पैतृक घर ओडिशा के मयूरभंज जिले में है। उन्होंने बताया कि “राष्ट्रपति के परिवार के एक सदस्य पहले भी गयाजी में पिंडदान कर चुके हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब खुद राष्ट्रपति पिंडदान के लिए यहां आई हैं।”
सुरक्षा व्यवस्था रही चाक-चौबंद
राष्ट्रपति के आगमन को देखते हुए विष्णुपद मंदिर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। मंदिर परिसर और मार्गों पर VVIP मूवमेंट को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा बलों की तैनाती की गई थी। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों ने यात्रा को शांतिपूर्ण और व्यवस्थित बनाने में अहम भूमिका निभाई।
पिंडदान का धार्मिक महत्व
गयाजी में पिंडदान करना हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, यह परंपरा भगवान विष्णु के पदचिह्नों के कारण खास मानी जाती है, जो विष्णुपद मंदिर में स्थित हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का परिचायक है बल्कि यह भी दर्शाती है कि आधुनिक भारत में भी परंपराएं जीवित हैं और उनका सम्मान किया जाता है। राष्ट्रपति का यह कदम न केवल आम लोगों के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और संस्कारों की गहराई को भी दर्शाता है।
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