President Murmu Speech: भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देशवासियों को संबोधित किया। अपने 24 मिनट के भावुक, गर्व और प्रेरणा से भरे भाषण में उन्होंने संविधान की सर्वोच्चता, लोकतंत्र के मूल्यों, और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कई महत्वपूर्ण संदेश दिए।
लोकतंत्र और संविधान पर बल
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा,“भारत लोकतंत्र की जननी है। हमारे लिए संविधान सर्वोपरि है। यह हमारे लोकतंत्र की आत्मा है, जिसमें न्याय, आज़ादी, समता और बंधुता जैसे चार मजबूत स्तंभ हैं।”उन्होंने कहा कि देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं ने भारत को राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक प्रगति का रास्ता दिखाया है। राष्ट्रपति ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत ने शुरुआत से ही वयस्क मताधिकार को अपनाकर लोकतंत्र को गहराई से आत्मसात किया, जबकि दुनिया के कई विकसित लोकतंत्रों में यह अधिकार सीमित था।
ऑपरेशन सिंदूर और आतंकवाद पर करारा संदेश
राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले को “कायराना हरकत” बताया और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में सेना की वीरता की सराहना की। उन्होंने कहा:“सेना ने सीमा पार जाकर आतंकियों के गढ़ को खत्म किया, जो भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”उन्होंने कश्मीर घाटी में रेल सेवा की शुरुआत को एक ऐतिहासिक उपलब्धि करार दिया और कहा कि इससे व्यापार, पर्यटन और रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी।
आयुष्मान योजना और सामाजिक कल्याण
राष्ट्रपति ने बताया कि अब तक 55 करोड़ से अधिक भारतीयों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ मिला है, जिससे यह दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना बन चुकी है।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस की अहमियत
राष्ट्रपति मुर्मू ने 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में याद करते हुए कहा:“हम इतिहास की उस भयानक त्रासदी को नहीं भूल सकते जिसमें लाखों लोग विस्थापित हुए और जानें गईं। हमें उन लोगों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए जिन्होंने उस पीड़ा को झेला।”
राष्ट्रपति मुर्मू की विशेष भूमिका
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति, पहली आदिवासी महिला, और सबसे कम उम्र में राष्ट्रपति बनने वाली नागरिक हैं। उनके नेतृत्व में राष्ट्रपति भवन समावेशिता, संवेदनशीलता और न्याय के नए प्रतिमान स्थापित कर रहा है।
राष्ट्रपति का सारगर्भित संदेश
“जब हम तिरंगे को सलामी देंगे, तब हमें स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को भी याद करना होगा। यह आजादी केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है-एक राष्ट्र को न्याय, समानता और अवसर की दिशा में आगे ले जाने की।” राष्ट्रपति मुर्मू का यह संबोधन न केवल एक औपचारिक परंपरा था, बल्कि देश को एकजुटता, आत्मनिर्भरता और संवैधानिक मूल्यों की गहराई से याद दिलाने वाला संदेश भी था। यह भाषण भारत के लोकतंत्र की सफलता, वीरता और समावेशी विकास के मार्ग की पुष्टि करता है।
