Presidential Reference: राज्यपालों के लिए ‘असीमित शक्ति’ खत्म? बिल पर SC के 3 विकल्प, बड़ा खुलासा!

ऐतिहासिक संवैधानिक फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की बिल रोकने की 'असीमित शक्ति' पर लगाई लगाम, कहा- अनिश्चितकाल तक विधेयक लंबित रखना 'फेडरलिज्म' के खिलाफ है; जानिए तीन संवैधानिक विकल्प क्या हैं जिनका पालन करना जरूरी है और कोर्ट ने समय सीमा क्यों तय नहीं की।

Chandan Das
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Presidential Reference: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गवर्नर किसी भी बिल को अनिश्चितकाल तक रोकने का अधिकार नहीं रखते। उन्हें या तो उस बिल पर अपनी मंज़ूरी देनी होती है, या फिर उसे विधानसभा में वापस भेजना होता है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस केस के तहत सुनाया। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने यह माना कि अगर गवर्नर किसी बिल को रोकते हैं, तो यह भारतीय संघीय ढांचे का उल्लंघन होता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बिल पास होने की प्रक्रिया के लिए कोई तय समय सीमा नहीं निर्धारित की जा सकती।

Presidential Reference: सुप्रीम कोर्ट का पहले का निर्णय

12 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाया था कि न तो गवर्नर और न ही राष्ट्रपति, विधानमंडल द्वारा पास किए गए बिल को अनिश्चितकाल तक रोक सकते हैं। उन्हें इस पर निश्चित समय सीमा के भीतर निर्णय लेना होता है। इस फैसले ने सवाल उठाया था कि क्या सुप्रीम कोर्ट गवर्नर या राष्ट्रपति को ऐसा ‘निर्देश’ दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत यह निर्णय लिया, जिसमें कहा गया था कि वह न्याय की स्थापना के लिए संवैधानिक अधिकारों से परे जाकर विशेष निर्णय दे सकते हैं।

Presidential Reference: राष्ट्रपति ने फैसले पर आपत्ति जताई

इस फैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आपत्ति जताई और संविधान के आर्टिकल 143 के तहत प्राप्त विशेष अधिकारों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर 14 सवाल उठाए। इस आपत्ति के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लिया कि इस मामले की समीक्षा के लिए एक पांच सदस्यीय प्रेसिडेंशियल रेफरेंस बेंच बनाई जाए।गवर्नर की भूमिका को लेकर, चीफ जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने यह स्पष्ट किया कि गवर्नर किसी भी परिस्थिति में बिल पास होने में रुकावट नहीं डाल सकते। अगर गवर्नर किसी बिल को मंजूरी नहीं देते, तो वह उसे विधानसभा में वापस भेज सकते हैं। बेंच में अन्य सदस्य जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंद्रकर भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि गवर्नर, जो एक संवैधानिक पद पर हैं, उन्हें चुनी हुई सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए।

चुनी हुई सरकार की प्राथमिकता

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक प्रणाली में एक ही व्यक्ति को सर्वोच्च निर्णय लेने की अनुमति होनी चाहिए। इसे उदाहरण देते हुए, बेंच ने कहा कि इस मामले में केवल चुनी हुई सरकार ही “ड्राइवर सीट” पर हो सकती है, न कि गवर्नर। गवर्नर का यह अधिकार नहीं है कि वह किसी बिल को लंबित रखें। अगर गवर्नर बिल को रोकते हैं, तो यह संविधान के उल्लंघन के रूप में देखा जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह गवर्नर्स और राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते और न ही उनके लिए समय सीमा निर्धारित कर सकते। अगर गवर्नर और राष्ट्रपति के पास बिल पर निर्णय लेने के लिए अनिश्चितकालीन समय है, तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना होगा। इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि गवर्नर की भूमिका केवल संविधान के तहत निर्धारित दायरे तक सीमित रहे, और चुनी हुई सरकार की प्राथमिकता को सर्वोच्च माना जाए।

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