Rahul Gandhi: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी शुक्रवार सुबह उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले पहुंचे। उनका यह दौरा रायबरेली में ‘चोर समझकर’ पीट-पीटकर मार दिए गए हरिओम वाल्मीकि के परिजनों से मुलाकात करने और शोक संवेदना व्यक्त करने के लिए था। हालांकि, राहुल गांधी के पहुंचने से पहले ही स्थानीय स्तर पर उनका विरोध शुरू हो गया। फतेहपुर में जगह-जगह ‘दर्द को मत भुनाओ, वापस जाओ’ के नारे लिखे पर्चे लगा दिए गए, जो विपक्षी दलों या स्थानीय विरोधियों की ओर से इस दौरे को राजनीतिक रंग देने के प्रयास को दर्शाते हैं।
पीड़ित परिवार से मुलाकात का कार्यक्रम
राहुल गांधी दिल्ली से विशेष विमान से आने के बाद सुबह 8:15 बजे सड़क मार्ग से फतेहपुर के लिए रवाना हुए। उनका कार्यक्रम तुराबअली का पुरवा में रहने वाले हरिओम वाल्मीकि के माता-पिता और पत्नी से मिलने का था।
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, वह सुबह 9:15 से 9:45 बजे तक हरिओम के स्वजन से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना देंगे। यह मुलाकात केवल आधे घंटे की थी, जिसके बाद वह सुबह 9:45 बजे फतेहपुर से चलकर वापस चकेरी हवाई अड्डे के लिए लौट जाएंगे।
रायबरेली की घटना: क्या था मामला?
दिवंगत हरिओम वाल्मीकि की पीट-पीटकर हत्या का मामला रायबरेली से जुड़ा है, जिसने पूरे राज्य में सुर्खियां बटोरी थीं। हरिओम को कथित तौर पर ‘चोर’ समझकर भीड़ ने बेरहमी से पीटा था, जिसके कारण उनकी मौत हो गई थी। यह घटना कानून-व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार पर लगातार हमलावर रहा है। राहुल गांधी की यह मुलाकात, इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मजबूती से उठाने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
राजनीतिक घमासान और विरोध के स्वर
राहुल गांधी के दौरे को लेकर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। जहां कांग्रेस इसे मानवीय संवेदना और पीड़ितों के प्रति एकजुटता दर्शाने वाला कदम बता रही है, वहीं विरोधियों ने इसे चुनावी राजनीति करार दिया है।
‘दर्द को मत भुनाओ, वापस जाओ’ जैसे पर्चे लगाने का स्पष्ट उद्देश्य यह संदेश देना है कि राहुल गांधी इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने इन विरोधों पर कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है और उनका पूरा फोकस पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने पर रहा।
राहुल गांधी का यह दौरा, भले ही छोटा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित समुदाय से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे को केंद्र में लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
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