Raja Kolander:उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने लोगों की रूह कंपा दी। नरभक्षी और सीरियल किलर राम निरंजन कोल उर्फ राजा कोलंदर को लखनऊ की एडीजे कोर्ट नंबर-5 ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला साल 2000 में हुए डबल मर्डर केस के तहत सुनाया गया, जिसमें दो लोगों की निर्मम हत्या के बाद उनकी खोपड़ी का सूप पीने का सनसनीखेज खुलासा हुआ था।
क्या था 2000 का वह खौफनाक कांड?

यह मामला 24 जनवरी 2000 का है, जब मनोज कुमार सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव लखनऊ से रीवा के लिए निकले थे। चारबाग रेलवे स्टेशन के पास से उन्होंने छह यात्रियों को बिठाया, जिनमें एक महिला भी शामिल थी। उनकी आखिरी लोकेशन रायबरेली के हरचंदपुर में दर्ज हुई थी। इसके बाद दोनों गायब हो गए। कई दिन की तलाश के बाद दोनों के कटा-फटा शव प्रयागराज के शंकरगढ़ के जंगलों में मिले।
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कोर्ट का फैसला और दोषियों को मिली सजा
जज रोहित सिंह की अदालत ने राजा कोलंदर और उसके साले बच्छराज कोल को अपहरण और हत्या के दोष में उम्रकैद की सजा सुनाई है। पुलिस की चार्जशीट के अनुसार, दोनों ने मिलकर मनोज और रवि की हत्या की और उनकी खोपड़ियों को उबालकर उनका सूप पी लिया।इस मामले की चार्जशीट 2001 में दाखिल हुई थी, लेकिन कानूनी उलझनों की वजह से मुकदमे की सुनवाई 2013 में शुरू हो सकी। अब, 25 साल बाद पीड़ित परिवारों को इंसाफ मिला है।
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पहले भी सामने आ चुका है राजा कोलंदर का वहशी चेहरा

राजा कोलंदर का नाम इससे पहले भी 2012 में पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के मामले में सामने आ चुका है। इलाहाबाद कोर्ट ने उसे पहले ही इस मामले में उम्रकैद की सजा सुना दी थी। जांच के दौरान उसके फार्महाउस से 14 मानव खोपड़ियां बरामद की गई थीं, जिन पर मार्कर से मृतकों के नाम लिखे गए थे। पूछताछ में उसने स्वीकार किया कि वह इन खोपड़ियों को उबालकर साफ करता, फिर नाम लिखकर उन्हें ज़मीन में दबा देता था।
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एक सनकी हत्यारा या सोची-समझी क्रूरता?
राम निरंजन कोल उर्फ राजा कोलंदर, प्रयागराज के शंकरगढ़ का रहने वाला था और नैनी के केंद्रीय आयुध भंडार (सीओडी) में नौकरी करता था। धीरे-धीरे वह राजनीति में भी सक्रिय हो गया। उसकी पत्नी जिला पंचायत सदस्य रह चुकी है। आमदनी बढ़ने के बाद लोग उसे ‘राजा’ कहने लगे।लेकिन उसके भीतर छुपा दरिंदा धीरे-धीरे सामने आने लगा। वह सिर काटकर अपने फार्महाउस पर ले जाता था, उन्हें उबालता और इंसानी भेजे का सूप पीता। उसे मानव खोपड़ियों का संग्रह करने की सनक थी।
समाज को झकझोर देने वाला फैसला
यह मामला सिर्फ एक न्यायिक फैसला नहीं, बल्कि समाज को झकझोर देने वाली क्रूरता और वहशीपन की कहानी है। 25 साल बाद मिला इंसाफ पीड़ित परिवारों के लिए एक छोटा सा सुकून है, लेकिन यह भी साबित करता है कि देर से सही, लेकिन न्याय जरूर होता है।इस केस ने न सिर्फ देश को दहला दिया, बल्कि यह भी दिखाया कि कानून के हाथ कितने भी लंबे क्यों न हों, वे आखिरकार अपराधी तक जरूर पहुंचते हैं।