मुगल साम्राज्य में रमजान (Ramadan) का महीना बहुत विशेष महत्व रखता था और इस दौरान सहरी और इफ्तार की रौनक देखते ही बनती थी। मुगलों के शासनकाल में ईद का त्योहार तो प्रमुख था, लेकिन रमजान के महीने में सहरी और इफ्तार का माहौल भी किसी त्यौहार से कम नहीं होता था। मुगलों के समय में यह महीना बेहद श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता था, और यह समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने का एक माध्यम भी बनता था।
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सहरी और इफ्तार के खास इंतजाम
रमजान (Ramadan) के दौरान मुगलों के दरबार में खास इंतजाम होते थे, जिनमें सहरी और इफ्तार के लिए भोजन का विशाल विविधता तैयार की जाती थी। मुगल साम्राज्य के महल में हर प्रकार के व्यंजन बनाए जाते थे और ये व्यंजन महलों के रसोईघरों में सैकड़ों की संख्या में तैयार होते थे। इस दौरान विशेष ध्यान इस बात पर दिया जाता था कि सहरी और इफ्तार में शामिल होने वाले खाद्य पदार्थ दिनभर के उपवास को सहन करने में मदद करें।

स्वादिष्ट व्यंजन के साथ इफ्तार का आयोजन
सहरी के समय, खासकर हलवे, शरबत, मीठे पकवान, और ताजे फल जैसे चीजें परोसी जाती थीं। इन खाद्य पदार्थों से शरीर को ताजगी मिलती थी, और दिनभर के उपवास को सही तरीके से रखा जा सकता था। वहीं, इफ्तार के वक्त तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन पेश किए जाते थे। बिरयानी, कबाब, तंदूरी रोटियां, सूप, खजूर और फलों के शरबत जैसे व्यंजन विशेष रूप से परोसे जाते थे। मुगलों के दरबार में इफ्तार के समय एक विशेष आयोजन होता था जिसमें उनके दरबारी और उच्च अधिकारी एकसाथ बैठकर भोजन करते थे।
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धूमधाम और उल्लास का माहौल
रमजान (Ramadan) के महीने में एक विशेष प्रकार की धूमधाम और उल्लास का वातावरण होता था। दिल्ली और आगरा जैसे प्रमुख मुगली शहरों में इफ्तार के आयोजन बहुत भव्य होते थे। इन इफ्तार पार्टियों में आम आदमी से लेकर खास तक सभी लोग शामिल होते थे। दिलचस्प यह था कि मुगल सम्राट और उनके परिवार के सदस्य भी इफ्तार के लिए आम जनता के साथ बैठते थे। यह सामाजिक एकता का प्रतीक बनता था क्योंकि लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ इफ्तार करते थे। इससे यह संदेश भी मिलता था कि समाज के सभी वर्गों के लिए रमजान एक समान महत्व रखता है।

‘शबे क़द्र’ का महत्व
रमजान (Ramadan) के दौरान इफ्तार की सादगी और उल्लास का नजारा बहुत ही खास होता था। इस दौरान लोग एक-दूसरे के साथ बैठकर खाने का आनंद लेते थे और एकजुटता का अहसास करते थे। इसके साथ ही रमजान के आखिरी दिन ‘शबे क़द्र’ का भी महत्व होता था। शबे क़द्र, जो रमजान के अंतिम दिनों में आता है, में मुगल दरबार में रात्रि जागरण और विशेष पूजा अर्चना होती थी।
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यह रात बहुत ही पवित्र मानी जाती थी और इस दौरान मुगलों का दरबार सजता था।शबे क़द्र की रात को लोग अपने परिवार के साथ इफ्तार करते थे और फिर रात भर इबादत करते थे। यह रात आत्मिक शांति और समृद्धि की रात मानी जाती थी। इस दौरान मुगलों के दरबार में खास तैयारियां की जाती थीं, और लोग अपने इष्ट देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा-अर्चना करते थे।

