Saint premanand: संत प्रेमानंद और गुरुशरणानंद के बीच की यह मुलाकात सनातन परंपरा और भक्ति की एक अनमोल मिसाल है। जब दो अलग-अलग संप्रदायों के महान साधक एक-दूसरे के सामने आए, तो वहां का दृश्य ऐसा था जैसे वर्षों बाद दो खोए हुए भाई मिल गए हों। दोनों के मन भावुकता से भर गए और आंखों में आंसू छलक उठे। यह मुलाकात श्रीराधा केलिकुंज आश्रम में हुई, जहां संत प्रेमानंद से मिलने और उनके स्वास्थ्य का हाल जानने के लिए उदासीय संप्रदाय के प्रमुख गुरुशरणानंद आए।
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गुरुशरणानंद का आगमन

सुबह करीब आठ बजे जब गुरुशरणानंद संत प्रेमानंद से मिलने आए, तो उन्होंने पहले उनका हालचाल पूछा। दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और भावुक हो गए। संत प्रेमानंद ने गुरुशरणानंद का साष्टांग प्रणाम किया, वहीं गुरुशरणानंद ने प्रेमभाव से उन्हें उठाकर गले लगा लिया। इस मुलाकात में दोनों के बीच आध्यात्मिक और भावनात्मक बंधन की गहराई स्पष्ट झलक रही थी।
गद्दी पर बैठाया और चरण धोए
मुलाकात के दौरान संत प्रेमानंद ने गुरुशरणानंद को अपने आसन पर बैठने का आग्रह किया, जबकि खुद उन्होंने जमीन पर बैठना पसंद किया। इसके बाद उन्होंने गुरुशरणानंद के चरण धोने की विनती की। यह एक ऐसी घटना थी जो साधारण नहीं थी, क्योंकि गुरुशरणानंद वर्ष में केवल एक दिन, गुरुपूर्णिमा पर ही चरण पूजन करते हैं। लेकिन प्रेमानंद की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्होंने इस बार विशेष रूप से चरण प्रच्छादन किया। संत प्रेमानंद ने जल से चरण धोए, चंदन लगाया, माल्यार्पण किया और उनकी आरती उतारी। यह दृश्य उस समय आश्रम में मौजूद सभी संतों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक था।
संत प्रेमानंद की भक्ति
गुरुशरणानंद ने संत प्रेमानंद की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे युवाओं में सनातन धर्म के प्रति जागरूकता पैदा कर रहे हैं और उन्हें दीर्घायु होकर भक्तों की सेवा करनी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि उनके एक संत ने प्रेमानंद को अपनी किडनी दान देने की इच्छा जताई थी, लेकिन गुरुशरणानंद ने इसे मना कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर प्रेमानंद चाहें तो लाखों किडनी उनके लिए उपलब्ध हो सकती हैं। इस पर संत प्रेमानंद ने विनम्रता से कहा कि जब तक भगवान चाहेंगे, वे अपने स्वास्थ्य के साथ चलेंगे।
गुरुशरणानंद का निरंतर स्नेह

संत प्रेमानंद ने आश्रम के अन्य संतों से गुरुशरणानंद के दर्शन करने की अपील की। जब गुरुशरणानंद जाने के लिए तैयार हुए, तो प्रेमानंद ने कहा कि उनकी विदाई देना कठिन होगा क्योंकि उनकी उपस्थिति से आश्रम में अत्यंत आनंद और प्रसन्नता का माहौल था।
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