मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का SC का फैसला शरीयत के खिलाफ, AIMPLB ने जताया विरोध

Akanksha Dikshit
SC's decision to give alimony to Muslim women

SC’s decision: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रविवार को कहा कि मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट (SC) का हालिया फैसला इस्लामी कानून के खिलाफ है। बोर्ड ने अपने अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी को इस फैसले को पलटने के लिए सभी कानूनी उपाय तलाशने के लिए अधिकृत किया है। एआईएमपीएलबी (AIMPLB) ने उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) को राज्य के हाईकोर्ट में चुनौती देने का निर्णय भी लिया है। बोर्ड ने अपनी कार्यसमिति की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया है कि मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के भरण-पोषण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘इस्लामी कानून (शरीयत) के खिलाफ’ है।

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सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि मुस्लिम महिलाएं दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘धर्म तटस्थ’ प्रावधान सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम कानून के तहत विवाहित हैं और तलाकशुदा हैं, तो सीआरपीसी (CRPC) की धारा 125 के साथ-साथ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 के प्रावधान भी लागू होते हैं।

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बोर्ड की प्रतिक्रिया

AIMPLB ने बैठक के बाद जारी बयान में कहा कि पैगंबर मोहम्मद ने जिक्र किया था कि अल्लाह की निगाह में सबसे बुरा काम तलाक देना है, इसलिए शादी को बचाने के लिए सभी उपायों को लागू करना चाहिए। बयान में कहा गया है कि अगर शादी को जारी रखना मुश्किल है तो मानव जाति के लिए समाधान के तौर पर तलाक की व्यवस्था की गई है। एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एस.क्यू.आर. इलियास ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बोर्ड ने अपने अध्यक्ष को यह सुनिश्चित करने के लिए अधिकृत किया है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ‘पलटने’ के लिए सभी ‘कानूनी, संवैधानिक और लोकतांत्रिक’ उपायों को अपनाया जाए।

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समान नागरिक संहिता के खिलाफ पांच प्रस्ताव पारित

AIMPLB की कार्यसमिति की बैठक के दौरान समान नागरिक संहिता (UCC) के खिलाफ एक प्रस्ताव सहित पांच प्रस्ताव पारित किए गए। बयान के मुताबिक, बोर्ड ने रेखांकित किया कि अनुच्छेद 25 के अनुसार सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, जो संविधान में दिया गया मौलिक अधिकार है।

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समान नागरिक संहिता अव्यावहारिक

बयान में कहा गया है, “हमारे बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक देश में, समान नागरिक संहिता अव्यावहारिक और अवांछनीय है” और इसलिए, इसे लागू करने का कोई भी प्रयास राष्ट्र की भावना और अल्पसंख्यकों के लिए सुनिश्चित अधिकारों के खिलाफ है। इसमें कहा गया है कि केंद्र या राज्य सरकारों को समान नागरिक संहिता कानून का मसौदा तैयार करने से बचना चाहिए।

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उत्तराखंड में यूसीसी का विरोध

बोर्ड ने दावा किया है कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू (UCC) करने का निर्णय “गलत और अनावश्यक” है, तथा यह अल्पसंख्यकों को दी गई संवैधानिक सुरक्षा के भी विरुद्ध है। बयान में कहा गया है कि इसलिए बोर्ड ने यूसीसी को उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है तथा अपनी कानूनी समिति को याचिका दायर करने का निर्देश दिया है।

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वक्फ संपत्तियों पर भी चर्चा

बैठक में यह भी संकल्प लिया गया कि वक्फ संपत्तियां मुसलमानों द्वारा खास परोपकारी उद्देश्यों के लिए बनाई गई विरासत हैं, और इसलिए, सिर्फ उन्हें ही इसका एकमात्र लाभार्थी होना चाहिए। बोर्ड ने वक्फ कानून को कमजोर करने या खत्म करने की सरकार की किसी भी कोशिश की कड़ी निंदा की।

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शरीयत के महत्व पर जोर

बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया है कि शरीयत (इस्लामी कानून) का पालन किया जाना चाहिए और कोर्ट के फैसले इसके खिलाफ नहीं होने चाहिए। शरीयत मुसलमानों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट (SC) के फैसले के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए सभी संभव उपायों का सहारा लिया जाएगा। इसके साथ ही, समान नागरिक संहिता के खिलाफ भी बोर्ड अपनी आवाज उठाता रहेगा और इसे चुनौती देने के लिए कानूनी रास्ते अपनाएगा। इस तरह, एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले और समान नागरिक संहिता के खिलाफ अपने रुख को स्पष्ट कर दिया है, और इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है।

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