Shashi Tharoor: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने केरल में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अलग तिथि पर मनाए जाने को लेकर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने रविवार (17 अगस्त, 2025) को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के माध्यम से कहा कि जब पूरे भारत में शनिवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई गई, तब केरल में यह पर्व नहीं मनाया गया। उन्होंने कहा कि मलयालम पंचांग के अनुसार केरल में जन्माष्टमी की तिथि 14 सितंबर, 2025 तय की गई है।
“भगवान दो बार जन्म नहीं ले सकते”
थरूर ने अपने पोस्ट में तंज करते हुए लिखा, “क्या कोई बता सकता है कि ऐसा क्यों होता है? निश्चित रूप से भगवान श्रीकृष्ण 6 सप्ताह के अंतराल पर दो बार जन्म नहीं ले सकते!” उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या धार्मिक त्योहारों की तिथियों को पूरे देश में एक समान करने की जरूरत नहीं है, ताकि एक ही धर्म के अनुयायी एक साथ उत्सव मना सकें। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि केरल में अलग-अलग क्रिसमस नहीं मनाया जाता, तो फिर जन्माष्टमी अलग क्यों?
राजनीति से जोड़ा श्रीकृष्ण का संदर्भ
जन्माष्टमी के अवसर पर शशि थरूर ने तिरुवनंतपुरम में एक कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण के नेतृत्व और कूटनीतिक गुणों का उल्लेख करते हुए भारतीय नेताओं को उनके जीवन से सीख लेने की सलाह दी। हिंदी में बोलते हुए थरूर ने कहा कि श्रीमद्भगवद गीता, महाभारत और भागवत पुराण में वर्णित श्रीकृष्ण का जीवन धर्म, नीति और लोक-सेवा के लिए मार्गदर्शक है।
राहुल गांधी की ओर संकेत?
थरूर के वक्तव्य को लेकर यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि उन्होंने परोक्ष रूप से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण की रणनीति और निर्णय लेने की शैली से आज के नेताओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। श्रीकृष्ण का जीवन धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश का प्रतीक है। कई बार उन्होंने ऐसे कदम उठाए जो परंपरागत रूप से सही नहीं लगे, लेकिन उनका अंतिम उद्देश्य धर्म की रक्षा था।
धर्म और नैतिकता के संतुलन की दी सीख
थरूर ने कहा कि श्रीकृष्ण का नेतृत्व इस बात का प्रतीक है कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी परंपराओं से हटकर भी फैसले लिए जा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि श्रीकृष्ण का जीवन हमें यह सिखाता है कि एक नेता को केवल नीति नहीं, नैतिकता और उद्देश्य की स्पष्टता भी होनी चाहिए।
शशि थरूर के इस बयान से धार्मिक त्योहारों की तिथियों की एकरूपता पर नई बहस छिड़ गई है। साथ ही, उन्होंने श्रीकृष्ण के बहाने भारतीय नेताओं को नीति और धर्म का पाठ पढ़ाते हुए राजनीतिक संदर्भ भी जोड़ा है। थरूर के तर्क धार्मिक आयोजनों की सामाजिक एकजुटता की ओर संकेत करते हैं और साथ ही नेतृत्व की आदर्श परिभाषा को भी रेखांकित करते हैं।
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