Shashi Tharoor: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्षी दलों ने संसद भवन से लेकर चुनाव आयोग के कार्यालय तक मार्च निकाला, लेकिन यह मार्च अधिक देर तक चल नहीं पाया। पुलिस ने कुछ ही दूरी पर सभी नेताओं को रोककर हिरासत में ले लिया। इस मार्च में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर भी शामिल थे। उन्होंने न सिर्फ इस कार्रवाई की आलोचना की, बल्कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल उठाए। शशि थरूर ने साफ तौर पर कहा कि यदि जनता के मन में चुनाव की निष्पक्षता को लेकर संदेह बना रहेगा, तो यह चुनाव आयोग की साख को कमजोर करता रहेगा। उन्होंने कहा, “जैसे ही इन संदेहों को दूर किया जाएगा, आयोग की विश्वसनीयता और सम्मान फिर से कायम हो सकता है।”
“गंभीर सवालों के लिए गंभीर जवाब जरूरी”
थरूर ने राहुल गांधी की ओर से उठाए गए सवालों का समर्थन करते हुए कहा कि जब देश का नेता विपक्ष किसी संवैधानिक संस्था से गंभीर सवाल पूछता है, तो उस संस्था की जिम्मेदारी बनती है कि वह उतनी ही गंभीरता से जवाब दे। उन्होंने कहा “यह सिर्फ सरकार के प्रति नहीं, बल्कि लोकतंत्र के प्रति चुनाव आयोग की जवाबदेही है,”। थरूर ने आगे कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता सबसे अहम होती है। यदि चुनावों की प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं और उन्हें नजरअंदाज किया जाता है, तो यह लोकतंत्र को कमजोर करने वाला कदम होता है।
‘लोकतंत्र को सवालों से खतरा नहीं, चुप्पी से है’
शशि थरूर ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में सवाल उठाना खतरा नहीं, बल्कि स्वस्थ प्रक्रिया है। असली खतरा तब होता है जब सवालों का जवाब देने से इनकार किया जाए या उन्हें दबाया जाए। “चुनाव आयोग को चाहिए कि वह संवाद की पहल करे और जनता के सामने स्पष्ट करे कि चुनाव प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और निष्पक्ष है।”
मार्च को लेकर सरकार पर निशाना
मार्च के दौरान विपक्षी नेताओं को हिरासत में लेने पर भी थरूर ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन और संवैधानिक संस्थाओं से जवाब मांगना लोकतंत्र का मूलभूत अधिकार है। इसे रोकना सिर्फ विरोध की आवाज़ को दबाने की कोशिश है। राहुल गांधी और विपक्ष की ओर से चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर उठाए गए सवाल अब धीरे-धीरे राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आ रहे हैं। शशि थरूर जैसे वरिष्ठ नेता का इस मसले पर खुलकर बोलना यह संकेत देता है कि आने वाले समय में चुनाव सुधार और जवाबदेही की मांग और तेज़ हो सकती है। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि चुनाव आयोग इन सवालों का क्या जवाब देता है और क्या वह अपनी साख बहाल करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाता है या नहीं।
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