Shashi Tharoor: भारत से जुड़े अमेरिका के फैसलों पर क्यों खामोश है भारतीय समुदाय?बैठक में बोले शशि थरूर

Mona Jha
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Shashi Tharoor: अमेरिका में एच-1बी वीजा नीति में प्रस्तावित बदलाव को लेकर जहां भारतीय आईटी पेशेवरों और तकनीकी कंपनियों के बीच चिंता का माहौल है, वहीं भारतीय सांसद शशि थरूर ने इस मुद्दे पर भारतीय-अमेरिकी समुदाय की ‘चुप्पी’ पर हैरानी जताई है। उन्होंने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोगों द्वारा इस पर आवाज़ नहीं उठाना चौंकाने वाला है।

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संसदीय पैनल की बैठक में उठा मुद्दा

मंगलवार को एक संसदीय पैनल की अमेरिकी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई। बैठक में अमेरिका द्वारा हाल ही में भारत के खिलाफ लिए गए कुछ प्रतिकूल फैसलों का भी जिक्र किया गया। इसी संदर्भ में थरूर ने यह मुद्दा उठाया कि अमेरिका में भारतीय समुदाय इस विषय पर बिल्कुल भी सक्रिय नहीं दिख रहा है।

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भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं की निष्क्रियता पर चिंता

थरूर ने बैठक के दौरान कहा कि, “मैं इस बात पर विशेष रूप से जोर देना चाहता हूं कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय की इस पूरे मामले में चुप्पी अत्यंत आश्चर्यजनक है। एक अमेरिकी कांग्रेस सदस्य ने यहां तक कहा कि उनके कार्यालय में एक भी भारतीय-अमेरिकी मतदाता का कॉल नहीं आया है, जिसमें एच-1बी नीति में बदलाव का विरोध या समर्थन करने की बात कही गई हो।”उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कमजोरी करार देते हुए कहा कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोग यदि अपनी बात नहीं रखेंगे, तो नीतियों में उनके हितों की अनदेखी होना स्वाभाविक है।

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एच-1बी वीजा: भारतीयों के लिए अहम मुद्दा

गौरतलब है कि एच-1बी वीजा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कुशल पेशेवरों को नियुक्त करने की सुविधा देता है। इस वीजा के तहत हर साल सबसे बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर अमेरिका जाते हैं। अमेरिकी प्रशासन द्वारा इस नीति में बदलाव की चर्चा के चलते भारतीय आईटी उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।थरूर ने कहा कि यह मुद्दा सिर्फ भारत सरकार का नहीं है, बल्कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय का भी है, जिन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी भागीदारी निभानी चाहिए।

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भारतीय समुदाय को सक्रिय होने की जरूरत

बैठक में मौजूद अन्य सदस्यों ने भी इस बात का समर्थन किया कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय को संगठित होकर इस तरह के मुद्दों पर अमेरिकी प्रशासन तक अपनी बात पहुंचानी चाहिए। थरूर ने उदाहरण देते हुए कहा कि अन्य प्रवासी समुदाय, जैसे यहूदी या अर्मेनियाई, जब किसी नीति से प्रभावित होते हैं, तो वे तुरंत संगठित होकर प्रतिक्रिया देते हैं और अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं।

 

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