Shibu Soren: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का शनिवार, 4 अगस्त को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके निधन की खबर के बाद पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई. मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार रांची के पास उनके पैतृक गांव निमरा में किया जाएगा।
रांची स्थित आवास पर अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़
बताते चले कि, पूर्व मुख्यमंत्री को अंतिम विदाई देने के लिए सोमवार को बड़ी संख्या में लोग रांची स्थित उनके आवास पर पहुंचे. समर्थकों, पार्टी नेताओं और आम जनता ने नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दी. झारखंड की राजनीति और आदिवासी समाज में गहरी छाप छोड़ने वाले शिबू सोरेन के जाने से राज्य शोकग्रस्त है.
हेमंत सोरेन भावुक, बोले– ‘बाबा की लड़ाई अब मैं आगे बढ़ाऊंगा’
शिबू सोरेन के निधन के बाद उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भावुक नजर आएय. उन्होंने कहा कि उनके पिता अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे और यह लड़ाई अब भी जारी रहेगी. उन्होंने कहा, “पिता के निधन से मैं पूरी तरह से टूट गया हूं, लेकिन उनके सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी अब मेरी है।”
एक्स पोस्ट में जताया शोक
हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “मैं अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा हूं. झारखंड की आत्मा का एक स्तंभ हमसे जुदा हो गया है। बाबा के संघर्षों को कोई किताब बयां नहीं कर सकती, लेकिन मैं अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने का संकल्प लेता हूं.”
संथाल किसान परिवार से उठे शिबू सोरेन बने आदिवासी राजनीति के अग्रदूत
शिबू सोरेन का जन्म एक साधारण संथाल आदिवासी किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता शोबरन सोरेन स्थानीय जमींदारों के विरोधी थे और जब शिबू छोटे थे, तब उनकी हत्या कर दी गई थी. इस घटना ने शिबू सोरेन के मन में आदिवासी अधिकारों, भूमि और सम्मान के लिए संघर्ष का बीज बोया.
झारखंड आंदोलन के जनक, चार दशक लंबा राजनीतिक सफर
शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर चार दशक से भी ज्यादा लंबा रहा. उन्होंने 1972 में एके रॉय और बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की थी. उनका उद्देश्य आदिवासी समाज को उनका अधिकार दिलाना और अलग राज्य की मांग को सशक्त बनाना था.
तीन बार बने मुख्यमंत्री, कोयला मंत्री के रूप में भी निभाई अहम भूमिका
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. उनका एक कार्यकाल मार्च 2005 में केवल 10 दिनों का रहा। वे आठ बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा के सदस्य रहे। यूपीए सरकार में उन्होंने कोयला मंत्री के रूप में भी अहम भूमिका निभाई। झारखंड की राजनीति में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा है.
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