Sita Navami 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख माह में सीता नवमी का पर्व मनाया जाता है। जो कि देवी सीता की साधना आराधना को समर्पित होता है। इस दिन मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। साथ ही भक्त सीता नवमी के दिन पूजा पाठ और उपवास आदि करते हैं।
इस बार सीता नवमी का पर्व 5 मई दिन सोमवार यानी आज मनाया जा रहा है। मान्यता है कि सीता नवमी के दिन पूजा पाठ के समय अगर सीता नवमी व्रत कथा का पाठ किया जाए तो देवी मां प्रसन्न हो जाती है और भक्तों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करती हैं, तो हम आपके लिए लेकर आए हैं सीता नवमी व्रत कथा।
यहां पढ़ें सीता नवमी व्रत कथा
सीता नवमी की व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन काल में मारवाड़ क्षेत्र में एक देव दत्त नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी शोभना के साथ निवास किया करता था.एक पुण्यात्मा होने के साथ, देव दत्त को धर्म और वेदों का भी अत्यधिक ज्ञान था. उसकी पत्नी शोभना, अपने आकर्षक रूप के लिए गांव भर में प्रसिद्ध थीं. ब्राह्मण देवता अपना घर चलाने के लिए एक गांव से दूसरे गांव जाकर भिक्षा मांगते थे
पुरुषों की कुसंगति
उनके पीठ पीछे, उनकी पत्नी शोभना दूसरे पुरुषों की कुसंगति में पड़ गई थी. अपने पति के साथ छल-कपट करके वह व्यभिचार के दलदल में फंस गई. धीरे-धीरे पूरे गांव को शोभना के इस दुष्कर्म के बारे में पता लग गया. अपने ही पति को धोखा देने के लिए, गांव के सभी लोग उसकी निंदा करने लगे. इस बात पर क्रोधित होकर, शोभना ने पूरे गांव को आग लगा दी और वह स्वयं भी उस अग्नि से बच न सकी और उसमें जल कर मर गई.
कुकर्मों की सजा
इन कुकर्मों की सजा शोभना को अगले जन्म में भुगतनी पड़ी. पति के साथ छल करने की वजह से उसका जन्म चांडाल के घर में हुआ और वह चांडालिनी कहलाई. मानवता की सभी सीमाओं को लांघ कर पूरे गांव को आग के हवाले करने वाली शोभना को अपने अगले जन्म में गरीबी, कुष्ठ रोग और अंधापन समेत कई परेशानियों से जूझना पड़ा. दरिद्र होने के कारण वह भोजन के लिए एक नगर से दूसरे नगर तक भटकती थी.
लगाई भोजन की गुहार
एक दिन भोजन की तलाश में भटकते-भटकते वह कौशल पुरी पहुंच गई. उस दिन पूरा नगर सीता नवमी का व्रत व पूजन कर रहा था. भूख से व्याकुल और रोगों से पीड़ित उस दुखियारी ने वहां के लोगों से भोजन देने की गुहार लगाई. वह कराहती आवाज में बोली, हे सज्जनों! मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो. मैं भूख से मर रही हूं. यह सुनकर एक व्यक्ति ने उससे कहा- देवी! आज तो सीता नवमी है, भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है, इसलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा. कल व्रत के पारण के समय आया, तब भरपेट प्रसाद मिलेगा.
सभी पापों से मुक्ति
परंतु वह चांडालिनी नहीं मानी और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी. अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी एवं जल प्रदान किया , जिसे ग्रहण करके वह उस जगह से चली गई. कुछ दूर जाने पर ही उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन इसके साथ ही, अनजाने में उससे सीता नवमी का व्रत पूर्ण हो गया.व्रत पूरा करने पर दया और प्रेम की मूरत, देवी सीता ने उसे उसके सभी पापों से मुक्ति दे दी. सीता माता की कृपा से उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुआ, जहां उसने अनंत वर्षों तक आनंदपूर्वक अपना समय व्यतीत किया. तत्पश्चात वह अगले जन्म में कामरूप देश के महाराजा जय सिंह की महारानी कामकला के रूप में प्रख्यात हुई.
जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा
व्रत के प्रभाव से उसे अपने पहले जन्मों का स्मरण बना रहा, जिसके कारण महारानी कामकला ने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिसमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई. इस प्रकार उन्होंने अपना पूरा जीवन रघुनाथ और जानकी जी की सेवा को समर्पित कर दिया.
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